‘‘संक्षेप में हिन्दी जगत का विभाजन दो भागों में किया जा सकता है – एक वो, जिन्होंने मुश्ताक अहमद यूसुफ़ी को पढ़ा है, दूसरे वो, जिन्होंने नहीं पढ़ा है। जिन्होंने नहीं पढ़ा है वो फौरन पढ़ जायें और इस किताब से शुरुआत करें, जिन्होंने मुश्ताक साहब को पढ़ा है उनसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।’’ – आलोक पुराणिक, प्रसिद्ध व्यंग्यकार
मुश्ताक अहदम यूसुफ़ी भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े व्यंग्यकार माने जाते हैं। धन यात्रा उनके बैंकिंग जीवन की दास्तां है जिसमें उनकी निजी ज़िन्दगी, दुनिया-समाज और धन-दौलत से जुड़े ऐसे ऐसे किस्से हैं कि पाठक भुलाये न भूले। यह किताब उनकी आत्मकथा मानी जाती है लेकिन इसे पढ़ना किसी रोचक उपन्यास पढ़ने से कम नहीं है। उनका तीखा व्यंग्य अपना सीधा तीर छोड़ता है और हँसी-हँसी में ज़माने की विडम्बना कह जाता है। हिन्दुस्तान से पाकिस्तान तक मुश्ताक अहमद यूसुफ़ी का सफर और उनके इंसानी स्वभाव के असल अंदाज से लिखी धन यात्रा में भाषा का जादू है और अजब-गजब यादगार चरित्र भी।