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सिनेमा और साहित्य : नाज़ी यातना शिवरों की त्रासद गाथा (Cinema and Literature: The Tragic Tale of Nazi Concentration Camps)

Original price was: ₹695.00.Current price is: ₹556.00.

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9789388684217

Description

मनुष्य एक स्वतन्त्रचेता प्राणी है। अनुशासन के नाम पर उसकी स्वतन्त्रता का हनन उसे गुलाम बनाता है। तानाशाह के लिए गुलामी बहुत मुफ़ीद होती है। ऐसे लोग, ऐसे संगठन कभी नहीं चाहते हैं कि लोग प्रश्न पूछे। प्रश्न, ऐसे लोगों को असुविधा में डालते हैं। प्रश्न, उनके छद्म को उघाड़ते हैं। प्रश्न सिद्ध करते हैं कि दूसरे भी सोच रहे हैं, सोच सकते हैं। इससे तानाशाहों का वर्चस्व टूटता है। इसीलिए तानाशाह अपने लोगों और अधिकांश शिक्षक और माता-पिता अपने छात्रों और बच्चों से कहते हैं तुम मत सोचो, हम हैं न तुम्हारे लिए सोचने वाले। और कहते हैं, हम सदैव तुम्हारा भला सोचते हैं। बचपन से गुलामी के बीज पड़ जाते हैं। माता-पिता के पास बच्चों के प्रश्न सुनने का समय नहीं होता है, उत्तर तो दूर की बात है। अकसर उत्तर कैसे दें, वे नहीं जानते हैं। कई बार उन्हें सही उत्तर मालूम नहीं होते हैं। गलत उत्तर और अधिक नुक़सान पहुँचाता है। प्रश्न सुनने का धैर्य उनके पास नहीं होता है। इसलिए वे कहते हैं, “यह बहुत प्रश्न पूछता है/पूछती है। या फिर कहते हैं, ‘दिमाग मत चाटो।’ ‘जाओ जा कर खेलो।’ ‘मेरे पास समय नहीं है, तुम्हारी फालतू बातों का उत्तर देने के लिए।’ ‘मुझे और बहुत ज़रूरी काम करने हैं।’ मनोविज्ञान कहता है जिस दिन मन में प्रश्न उठने बन्द हो जाते हैं, व्यक्ति की प्रगति उसी दिन रुक जाती है, असल में, उसी दिन उस मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। जानने के लिए सवाल पूछना और असहमति में सवाल उठाना दोनों आवश्यक है। अन्धकार युग में किताबें जलायी जाती हैं। क्योंकि किताबें प्रश्न पूछने को उकसाती हैं, जागरूक करती हैं और प्रश्न पूछने को प्रेरित करती हैं। ये प्रश्न कुछ लोगों के लिए असुविधा उत्पन्न करते हैं।

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