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सफ़र लम्बा है (the ride is long)

Original price was: ₹395.00.Current price is: ₹316.00.

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9789355189042

Description

“शक बहुत बुरी चीज़ है । ईश्वर न करे कोई इसकी चपेट में आये। इसकी एक छोटी-सी चिनगारी मधुर से मधुर सम्बन्धों को जलाकर राख कर देती है। इसके चलते सम्बन्धों में एक बार जो दरार पड़ जाती है, तो वह पाटे नहीं पटती। इसने न जाने कितने घरों को तबाह कर दिया है। और तो और, शंकालु व्यक्ति अपना जीवन तो तबाह करता ही है, साथ-साथ दूसरों के भी जीवन को नरक कर देता है। अतः इससे हम जितना दूर रहें, उतना ही अच्छा है।”

★★★★★

“मनीष, गाँव अब गाँव कहाँ रहे? गाँव तो गन्दी राजनीति के अखाड़े हो गये हैं। ईर्ष्या-द्वेष, छल-छद्म, कटुता-वैमनस्य आदि के जंगल में गाँवों की सुख-शान्ति भटक गयी है। मानवता को मुँह छिपाने की जगह नहीं मिल रही है। एक समय था जब गाँव के लोग भोले-भाले एवं ईमानदार माने जाते थे और थे भी, पर आज उन्हें सन्दिग्ध दृष्टि से देखा जाता है। उसका कारण है कि हर गाँव में दो-चार ऐसे धूर्त एवं बेईमान हैं, जिन्होंने उसके माहौल को गन्दा कर रखा है। उनके चलते शरीफ़ लोग घुट-घुटकर जी रहे हैं।”

★★★★★

“यह तो मैं नहीं जानती, पर मनुष्य नहीं रहते । भला बताइए, जिस घर का मुखिया भले आदमियों के हाथ-पाँव तोड़वाता हो, जिसका बेटा दूसरों की बहू-बेटियों की इज़्ज़त को मटियामेट करता हो और जो अपने गुण्डों से अपहरण की धमकी दिलवाता हो, उस घर में रहने वालों को मनुष्य कैसे कहा जा सकता है?”

★★★★★

“मनीष बाबू, इतनी जल्दी हार जायेंगे, तो कैसे काम चलेगा? वैसे भी आप कहाँ हारे हैं? हारे तो मेरे पति हैं, जिनके लाख मना करने पर भी मैं आपको मनाने यहाँ चली आयी। इसके अलावा अभी आप अपने गाँव से पूरी तरह उऋण भी तो नहीं हुए? पूर्ण रूप से तो उऋण तब होंगे, जब यहाँ के लोगों की दूषित मानसिकता को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे, अभी तो आपने उसकी शाखाओं को काटा है। मेरे पति और भोला जैसे लोग तो इस पृथ्वी पर रोज़ पैदा होते हैं और रोज़ मरते हैं, पर मनीष तो कभी-कभी पैदा होते हैं। ज़्यादा तो नहीं, पर इतना अवश्य कहूँगी कि आपने अपने जिस गाँव को तूफ़ानों के बीच से निकालकर किनारे लगाया है, आपके चले जाने के बाद ये लोग उसे मझधार में नहीं, किनारे ही डुबो देंगे।”

★★★★★

“आज की नयी पीढ़ी को हो क्या गया है, जो अपने बुजुगों के साथ इस तरह का उपेक्षित व्यवहार कर रही है। क्या वह यह भूल गयी है कि एक न एक दिन उसे भी वृद्ध होना है और तब उसके साथ भी उसकी सन्तानें इसी तरह का व्यवहार करेंगी। बच्चे अपने माँ-बाप से जो सीखेंगे, आगे चलकर वही तो करेंगे। माँ-बाप अपनी सन्तानों से मात्र इतना ही चाहते हैं कि उन्हें दो रोटी मिल जायें और प्रेम के दो शब्द । इससे अधिक उन्हें चाहिए भी नहीं, पर आज की पीढ़ी उन्हें इतना भी नहीं दे पा रही है।”

 

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