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शकुन्तला : स्मृति जाल (Shakuntala: The Trap of Memory)

Original price was: ₹495.00.Current price is: ₹396.00.

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9789352290765

Description

शकुन्तला –
यह महाभारत की शकुन्तला की कथा नहीं, एक और शकुन्तला की कहानी है। नमिता गोखले की अपनी स्मृति और कल्पसृष्टि की शकुन्तला। उस समय की शकुन्तला जबकि भारत पर सिकन्दर के आक्रमण को हज़ार वर्ष बीत चुके हैं, और ‘शाक्य मुनि का नया धर्म प्राचीन मत के आधार को खंडित’ कर रहा है। यह उथल-पुथल पृष्ठभूमि में अवश्य है, किन्तु उपन्यास का मर्म उस समय की ही नहीं, किसी भी समय की स्त्री द्वारा इस सचाई के साक्षात्कार का रेखांकन करने में है कि, ‘तुम्हारे संसार में शक्तिशालिनी स्त्रियों के लिए बहुत कम स्थान है, और अबलाओं के लिए बिल्कुल नहीं’।
शकुन्तला के लिए सारा जीवन इस संसार में अपना मार्ग, अपना स्थान खोजने का अनुष्ठान है। इस खोज में पहाड़ी गीत की तरह सुख-दुःख का मिश्रण तो है ही, अप्रत्याशित स्वर-कम्पन और उतार-चढ़ाव भी हैं। शरीर और मन दोनों धरातलों पर चल रही प्रेम और तृप्ति की इस खोज में शकुन्तला के व्यक्तित्व का रेखांकन भी है, और निम्नतम इच्छाओं के सामने समर्पण भी। उसकी आत्मखोज का एक ध्रुव इस बोध में है कि जीवन जिया और दूसरा इस अहसास में कि इस जीने में ही अपना एक अंश खो भी दिया।
मार्के की बात है इन दोनों स्थितियों के प्रति, शकुन्तला की सजगता – जिसे नमिता गोखले बहुत सधे हुए ढंग से, रोचक आख्यान में पिरोती हैं।
यह कल्पसृष्टि इतिहास के एक ख़ास बिन्दु पर घटित होने के साथ ही ऐन हमारे समय की स्त्री द्वारा भी अपनी अस्मिता की खोज का आख्यान रचती है, स्त्री के कोण से यौनिकता को देखती है, रचती है और उसकी विवेचना करती है। कर्तव्य, अकर्तव्य और मर्यादा के ही नहीं, स्त्री के अपने मन के द्वन्द्वों से भी नितान्त ग़ैर-भावुक और इसीलिए अधिक मार्मिक ढंग से साक्षात्कार करती है। अपने अप्रत्याशित फैसलों से रचे गये जीवन के अन्त में, शकुन्तला घृणा, स्पष्टता, उत्साह और अर्थहीनता के मिले-जुले भावों के बावजूद मानती है, “संसार सदैव अपने मार्ग पर चलता है, किन्तु कम से कम मैंने अपना मार्ग खोजा तो। यही तारक था, शिव का मुक्तिदायक मन्त्र”।
अत्यन्त पठनीय, इस उपन्यास की ख़ूबी यह है कि शकुन्तला द्वारा अर्जित साक्षात्कार किसी सपाट नैतिक फैसले का साक्षात्कार नहीं, बल्कि स्याह-सफ़ेद के बीच के विराट विस्तार का साक्षात्कार है, जोकि पाठक के लिए भी अवकाश छोड़ता है कि वह शकुन्तला के जीवन जीने के ढंग से सहमत या असहमत हो सके। उसके द्वारा अर्जित ‘तारक-मन्त्र’ से विवाद कर सके।

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