Description
अपनी इस पुस्तक के शीर्षक में पद ‘थेरीगाथा की स्त्रियाँ’ मैंने जानबूझ कर गलत रखा है। सही पद ‘थेरीगाथा की भिक्षुणियाँ’ है। लेकिन गलत शीर्षक रख कर मैं यह बताना चाहता हूँ कि बुद्ध ने मेरी स्त्रियाँ छीनी हैं। घर से बेघर करके और विवाह से छीन कर स्त्रियों को संन्यास वाली सामाजिक मृत्यु की भिक्षुणियाँ बनाना उनका धार्मिक अपहरण कहा जाना चाहिए। असल में, भारत में ब्राह्मण, बौद्ध और जैन दर्शन के संन्यास व्यक्तिगत स्तर अपने-अपने मोक्ष, निर्वाण और कैवल्य के लिए अभी तक भी इस संसार में भ्रम में पड़े हुए हैं। आजीवक की दृष्टि इन तीनों से भिन्न, लौकिक और सामूहिक है।
—भूमिका से




