Description
अदब का ताल्लुक़ दिल के रिश्ते से होता है, हमारे अहसास की पैमाइश और गहराई की अभिव्यक्ति कोई लफ़्ज़ नहीं बल्कि जज़्बातों का सैलाब होता है, जिसे हम जीते हैं, महसूस करते हैं। ज़िन्दगी इन्हीं खट्टे-मीठे तज़ुरबों की कहानी बन जाती है। कुछ कलन्दर इसे अपने इशारे पर नचाते हैं और कुछ को ये। उर्दू अदब की दौलत ऐसे दीवाने-फनकारों से हमेशा लबरेज़ रही है जिन्होंने अपनी कहानी को लफ़्ज़ों के दस्तावेज़ से रोशन किया है। निदा फ़ाज़ली की ‘चेहरे’ उर्दू अदब के ऐसे ही मस्त-कलन्दरों की ज़िन्दगी की आपबीती है। मशहूर शाइरों का अन्दाज़े -बयां, उनका तौर–तरीका, ख़्वाहिशें, हसद, मोहब्बतें, चाल-चलन, सादगी, रवानी, मिठास और लोच को निदा फ़ाज़ली की क़लम जिस तरह से बयां करती है वो कमाल है। लगता है ये किसी का जाति मामला नहीं बल्कि हमारा ही आईना है जिसमें हमें अपना ही चेहरा दिखाई देता है।
निदा फ़ाज़ली के अन्दाज़ में ख़ूबसूरती और सलीके का मिश्रण है आप जानते हैं आपको कब-कब क्या कहना है। ‘चेहरे’ निदा भाई के अपने संस्मरण हैं जो अब हमारा भी हिस्सा हैं।