Description
किताब के बारे में: गोल सभा आचार्य चतुरसेन का एक अत्यंत विचारोत्तेजक सामाजिक.राजनीतिक उपन्यास हैए जो भारतीय लोकतंत्रए संसद प्रणाली और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचारए अवसरवाद और नैतिक पतन पर तीखा प्रहार करता है। उपन्यास में नेताए अफसरशाही और जनता के बीच के रिश्तों को बड़े यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह राजनीति की नीतियों और चालबाजियों को उजागर करता हैए जहाँ नैतिकता की जगह स्वार्थ और पदलोलुपता हावी है। चतुरसेन अपने गहन विश्लेषण और तीखे व्यंग्य के माध्यम से पाठकों को सोचने पर विवश करते हैं कि असली जनसेवा क्या है और लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप कैसा होना चाहिए।


