Description
किताब के बारे में: कंकाल जयशंकर प्रसाद का एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक उपन्यास है जिसमें तत्कालीन भारतीय समाज की नैतिकता स्त्री.स्वतंत्रता और सामाजिक विडंबनाओं पर गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया गया है उपन्यास की नायिका सुधा एक शिक्षित आत्मनिर्भर और भावनात्मक रूप से दृढ़ महिला है जो समाज की परंपरागत सोच को चुनौती देती है उसके जीवन में आए संघर्ष प्रेम और आत्मबलिदान के माध्यम से प्रसाद ने नारी अस्मिता और सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया है कंकाल एक प्रतीक बन जाता है उस खोखली नैतिकता का जिस पर समाज खड़ा है यह रचना विचारशीलए संवेदनशील और परिवर्तनशील समाज की ओर संकेत करती है

