Vyatha Kaunteya Ki Novel Book
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- ISBN13: 9789349275331
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Novel
सूर्यपुत्र की अलौकिक तेजस्विता एवं देदीप्यमान कवचकुंडल के साथ कर्ण के धरावतरण पर उसे प्रथम प्रतिकार किसी और से नहीं अपितु अपनी ही जन्मदात्री से मिलता है, जो उस नवजात शिशु को एक पिटारे में रखकर वेगवती नदी में प्रवाहित कर देती है और यहीं से प्रारंभ होती है कालप्रवाह में नियति के थपेड़ों को झेलते हुए कौंतेय की व्यथाकथा।
वह कौंतेय है, कुलीन है, पराक्रमी है, अजेय है, किंतु उसकी नियति उसे अकुलीनता, हीनता एवं अंतहीन उपेक्षा के अपरिमित दर्द और दंश के साथ निरंतर घेरे रहती है। देवराज इंद्र के छलछद्म के कारण अपने कवचकुंडल से वंचित वह महादानी, राजमाता कुंती को पांडवों की प्राणरक्षा हेतु दिए गए अपने वचन के कारण भी स्वयं अपने त्रासद जीवन की पटकथा का सर्जक है।
महाभारत के अनेक दहकते प्रश्नों का निर्मम विश्लेषण करती हुई यह कृति जहाँ अपने औपन्यासिक विस्तार में कर्ण के देवोपम मानवीय गुणों को प्रतिष्ठित करती है, वहीं अंततोगत्वा यह प्रश्न भी उठाती है कि 'क्या कौंतेय की व्यथा का कोई अंत भी है?' देवलोक में श्रीकृष्ण के समक्ष कर्ण की गहन अंतर्वेदना को उद्घाटित करती संवेदनाप्रवण भावाभिव्यक्ति एक फेनिल ताजगी के साथ कर्ण की व्यथाकथा को अत्यंत विचारोत्तेजक एवं पठनीय बना देती है।
वह कौंतेय है, कुलीन है, पराक्रमी है, अजेय है, किंतु उसकी नियति उसे अकुलीनता, हीनता एवं अंतहीन उपेक्षा के अपरिमित दर्द और दंश के साथ निरंतर घेरे रहती है। देवराज इंद्र के छलछद्म के कारण अपने कवचकुंडल से वंचित वह महादानी, राजमाता कुंती को पांडवों की प्राणरक्षा हेतु दिए गए अपने वचन के कारण भी स्वयं अपने त्रासद जीवन की पटकथा का सर्जक है।
महाभारत के अनेक दहकते प्रश्नों का निर्मम विश्लेषण करती हुई यह कृति जहाँ अपने औपन्यासिक विस्तार में कर्ण के देवोपम मानवीय गुणों को प्रतिष्ठित करती है, वहीं अंततोगत्वा यह प्रश्न भी उठाती है कि 'क्या कौंतेय की व्यथा का कोई अंत भी है?' देवलोक में श्रीकृष्ण के समक्ष कर्ण की गहन अंतर्वेदना को उद्घाटित करती संवेदनाप्रवण भावाभिव्यक्ति एक फेनिल ताजगी के साथ कर्ण की व्यथाकथा को अत्यंत विचारोत्तेजक एवं पठनीय बना देती है।
मनोरमा श्रीवास्तव
जन्म : 01 जनवरी, 1952, बलिया (उ.प्र.) ।
शिक्षा : एम.एससी., बी.एड., एलएल.बी. वर्ष 2002 से 2012 तक देहारादून व लखनऊ में विज्ञान विषय का अध्यापन। कहानियाँ व लेख अनेक पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित। दुर्बल वर्ग के बच्चों की समस्याओं पर रेडियो व दूरदर्शन पर वार्ता।
अभिरुचियाँ : साहित्य, संगीत एवं समाजसेवा। वर्ष 2012 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर समाजसेवा। आरंभ से ही बच्चों में भिक्षावृत्ति निवारण हेतु विशेष रूप से प्रयासरत। वर्ष 2014 व 2015 में माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश व मा. राज्यपाल द्वारा सम्मानित। वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 'बाल मित्र' के रूप में सम्मानित ।
साहित्य सृजन : 'आईने में उतरा एक आकाश', 'कोहिनूर जहाँ भी रहा अनमोल रहा',' एक सूरज एक सफर'।
संपर्क : 2/188, विकास नगर, लखनऊ (उ.प्र.)।
मो. : 9453350077
जन्म : 01 जनवरी, 1952, बलिया (उ.प्र.) ।
शिक्षा : एम.एससी., बी.एड., एलएल.बी. वर्ष 2002 से 2012 तक देहारादून व लखनऊ में विज्ञान विषय का अध्यापन। कहानियाँ व लेख अनेक पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित। दुर्बल वर्ग के बच्चों की समस्याओं पर रेडियो व दूरदर्शन पर वार्ता।
अभिरुचियाँ : साहित्य, संगीत एवं समाजसेवा। वर्ष 2012 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर समाजसेवा। आरंभ से ही बच्चों में भिक्षावृत्ति निवारण हेतु विशेष रूप से प्रयासरत। वर्ष 2014 व 2015 में माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश व मा. राज्यपाल द्वारा सम्मानित। वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 'बाल मित्र' के रूप में सम्मानित ।
साहित्य सृजन : 'आईने में उतरा एक आकाश', 'कोहिनूर जहाँ भी रहा अनमोल रहा',' एक सूरज एक सफर'।
संपर्क : 2/188, विकास नगर, लखनऊ (उ.प्र.)।
मो. : 9453350077