Tumhen Lagata Hai Kya?
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- ISBN13: 9789394534681
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): General
प्रभात कुमार की कविताओं का यह संकलन अनेक दृष्टियों से उल्लेखनीय है। वन्य निर्झरों की भाँति प्रस्फुटित इन स्वतःस्फूर्त कविताओं में एक अद्भुत जिजीविषा, प्रेरणा तथा गति परिलक्षित होती है; साथ ही आज के बहुआयामी जीवन के अनेकानेक पहलुओं को ये कविताएँ पूरी सच्चाई और बेबाकी से प्रतिबिंबित भी करती हैं। प्रेम और सौंदर्य, प्रकृति और कला, मित्र, परिवार, ग्राम, नगर इत्यादि तो इनमें हैं. ही, कुंठा, अभाव, साधनहीनता, दुःख व इन सबके लिए गहन संवेदना, साथ ही सबके दिलोदिमाग पर बरसों से छाई हुई कोविड की विभीषिका का भयानक संत्रास--सभी कुछ अत्यंत प्रभावी और हृदयस्पर्शी रूप में इनमें परिलक्षित होता है।
गठन, संरचना तथा प्रस्तुति में कविताएँ सामान्य लीक से हटकर बिल्कुल अलग हैं। इनकी अपनी एक विशेष संवेदना तथा संप्रेषणीयता है।
जहाँ एक ओर ये कविताएँ पूरी तरह मौलिक, कवि की स्वतंत्रचेता प्रतिभा की उपज हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने आपमें पूर्ण, निद्वँद्र तथा स्वच्छंद हैं, जो अपने प्रकटीकरण के लिए कवि को भी दुर्लक्षित कर देती हैं। कवि की स्वीकारोक्ति है कि कविताएँ अपने आप को उससे बरबस कहलवा रही हैं, साथ ही वे उसे गढ़ भी रही हैं।
इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में पाठकों के सामने आ रही ये कविताएँ परंपरा से हटकर हैं--इनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो निश्चित रूप से इन्हें शताब्दी की उल्लेखनीय रचनाओं में स्थापित करेंगी ।
गठन, संरचना तथा प्रस्तुति में कविताएँ सामान्य लीक से हटकर बिल्कुल अलग हैं। इनकी अपनी एक विशेष संवेदना तथा संप्रेषणीयता है।
जहाँ एक ओर ये कविताएँ पूरी तरह मौलिक, कवि की स्वतंत्रचेता प्रतिभा की उपज हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने आपमें पूर्ण, निद्वँद्र तथा स्वच्छंद हैं, जो अपने प्रकटीकरण के लिए कवि को भी दुर्लक्षित कर देती हैं। कवि की स्वीकारोक्ति है कि कविताएँ अपने आप को उससे बरबस कहलवा रही हैं, साथ ही वे उसे गढ़ भी रही हैं।
इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में पाठकों के सामने आ रही ये कविताएँ परंपरा से हटकर हैं--इनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो निश्चित रूप से इन्हें शताब्दी की उल्लेखनीय रचनाओं में स्थापित करेंगी ।
प्रभात कुमार —प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में जनमे और वहीं के विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र तथा गणित में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर भारतीय प्रशासनिक सेवा में लगभग चार दशकों तक कार्यरत रहे प्रभात कुमार का इलाहाबाद की साहित्य बोध से ओतप्रोत हवा से प्रभावित होना स्वाभाविक था। हिंदी, अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी भाषा/साहित्य के मर्मज्ञ; वैसे मूलतः भौतिकीविद् एवं कुशल प्रशासक। भारत के कबीना सचिव और राज्यपाल रहे प्रभात कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और कविता, कला तथा साहित्य के विभिन नक्षेत्रों में लंबे समय से योगदान करते रहे हैं। काव्य-साधना में आधी सदी से अधिक समय बिताने के बाद भी उन्होंने कविताओं को प्रकाशित कर वृहत्तर पाठक वर्ग के सामने लाने में कुछ विशेष रुचि नहीं ली। लेखक तथा संपादक प्रवर खुशवंत सिंह की अनुशंसा तथा कवि-प्राध्यापक, 'पश्यंती' संपादक प्रो. प्रणव कुमार बंद्योपाध्याय की प्रशंसा के बावजूद वह प्रकाश में आने (Public Exposure) से कतराते रहे । प्रणवजी ने उन्हें 'चुप कवि' ठीक ही कहा था। एक लंबे अंतराल के बाद कवि ने अपनी चुप्पी भंग की है, जिससे इन कविताओं का प्रकाशन संभव हो सका है।