Sweekar Ka Jadoo
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- ISBN13: 9788173157424
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Self-Help Groups
तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
Flap - II
स्वीकार का जादू
हर मानव असली खुशी की तलाश में भटक रहा है। असली खुशी न पाकर वह उसे धन-दौलत, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, नाम-शोहरत, सुख-सुविधा, मनमानी-मनोरंजन में ढूँढ़ता है। तो क्या खुशी इन बातों से मिल सकती है? नहीं। असली खुशी मन के पार, इच्छाओं के पीछे, मानव की पूर्व अवस्था में छिपी हुई है। उस अवस्था तक पहुँचने का सूत्र ‘स्वीकार भाव’ से शुरू होता है।
असली खुशी की तलाश में हम नीचे लिखी गई सात प्रकार की खुशियों से गुजरते हैं। यह तब तक चलता है जब तक हम उस अवस्था तक नहीं पहुँच जाते, जहाँ हम जाना चाहते हैं। उस अवस्था को परम आनंद की अवस्था भी कहा जा सकता है—
उत्तेजन खुशी : पार्टी, रॉक संगीत, अखबार, इच्छा-पूर्ति से मिलनेवाली खुशी।
फॉर्मूला खुशी : दो खुशियों को जोड़कर मिलनेवाली खुशी उदाहरण—छुट्टी+पिकनिक, संडे+टी.वी. इत्यादि।
द्वितीय खुशी : दूसरों को चिढ़ाकर, सताकर मिलनेवाली, सेकंड हैंड खुशी।
पुरानी खुशी : ठगकर, छल-कपट द्वारा पैसे प्राप्त करने पर मिलनेवाली खुशी।
इसके बाद पाँचवीं सेवा की खुशी, छठी दिव्य भक्ति की खुशी और सातवीं स्वानुभव की खुशी आती है। इन्हीं खुशियों को प्राप्त करना मानव का लक्ष्य है।
प्रस्तुत पुस्तक स्वीकार के जादू द्वारा आपको झूठी खुशी से निकालकर सच्चे आनंद तक पहुँचाती है। इससे आप तुरंत, अभी और यहीं खुशी प्राप्त कर सकते हैं।प्रस्तुत पुस्तक स्वीकार के जादू द्वारा आपको झूठी खुशी से निकालकर सच्चे आनंद तक पहुँचाती है। इससे आप तुरंत, अभी और यहीं खुशी प्राप्त कर सकते हैं।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
Flap - II
स्वीकार का जादू
हर मानव असली खुशी की तलाश में भटक रहा है। असली खुशी न पाकर वह उसे धन-दौलत, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, नाम-शोहरत, सुख-सुविधा, मनमानी-मनोरंजन में ढूँढ़ता है। तो क्या खुशी इन बातों से मिल सकती है? नहीं। असली खुशी मन के पार, इच्छाओं के पीछे, मानव की पूर्व अवस्था में छिपी हुई है। उस अवस्था तक पहुँचने का सूत्र ‘स्वीकार भाव’ से शुरू होता है।
असली खुशी की तलाश में हम नीचे लिखी गई सात प्रकार की खुशियों से गुजरते हैं। यह तब तक चलता है जब तक हम उस अवस्था तक नहीं पहुँच जाते, जहाँ हम जाना चाहते हैं। उस अवस्था को परम आनंद की अवस्था भी कहा जा सकता है—
उत्तेजन खुशी : पार्टी, रॉक संगीत, अखबार, इच्छा-पूर्ति से मिलनेवाली खुशी।
फॉर्मूला खुशी : दो खुशियों को जोड़कर मिलनेवाली खुशी उदाहरण—छुट्टी+पिकनिक, संडे+टी.वी. इत्यादि।
द्वितीय खुशी : दूसरों को चिढ़ाकर, सताकर मिलनेवाली, सेकंड हैंड खुशी।
पुरानी खुशी : ठगकर, छल-कपट द्वारा पैसे प्राप्त करने पर मिलनेवाली खुशी।
इसके बाद पाँचवीं सेवा की खुशी, छठी दिव्य भक्ति की खुशी और सातवीं स्वानुभव की खुशी आती है। इन्हीं खुशियों को प्राप्त करना मानव का लक्ष्य है।
प्रस्तुत पुस्तक स्वीकार के जादू द्वारा आपको झूठी खुशी से निकालकर सच्चे आनंद तक पहुँचाती है। इससे आप तुरंत, अभी और यहीं खुशी प्राप्त कर सकते हैं।प्रस्तुत पुस्तक स्वीकार के जादू द्वारा आपको झूठी खुशी से निकालकर सच्चे आनंद तक पहुँचाती है। इससे आप तुरंत, अभी और यहीं खुशी प्राप्त कर सकते हैं।
तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।