Shatrughna Charit
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- ISBN13: 9789382901518
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Religion & Spirituality
ईश्वर के अंशावतार शत्रुघ्न के समग्र व्यक्तित्व को उद्घाटित करने वाली यह कृति विश्व के साहित्याकाश की प्रथम एवं मौलिक कृति है। इस ग्रंथ में जहाँ ईश्वर अंश अवतार श्री शत्रुघ्न के अकथनीय कर्मयोग का अवतरण है, वहीं श्रीरामचरित मानस एवं वाल्मीकि रामायण के विवादित प्रसंगों की भी सही व्याख्या का अवतरण हुआ है। सनातन संस्कृति की वैदिक अवधारणाओं से लेकर संबंधित उपलब्ध सभी महनीय शास्त्रों का नवनीत इस ग्रंथ में प्रभु की कृपा से समाहित हुआ है। पावन श्रीरामचरित मानस और वाल्मीकि के संदर्भों और अंतर्निहित साक्ष्यों को आधार बनाकर ही इस ग्रंथ की रचना हुई है। अत: मूल तो वही ग्रंथ है, किंतु यह पावन ‘श्री शत्रुघ्न चरित’ महाकाव्य इन दोनों ग्रंथों का ज्योतिवाह अर्थात् प्रकाश-स्तंभ है। भारतीय अजेय चिंतनधारा को विकृत करने के आशय से की गई गलत व्याख्याओं को भी यथासंभव सही अर्थों में प्रस्तुत करने का कार्य इस ग्रंथ में हुआ है।
चैत्र शुक्ल चतुर्दशी रविवार संवत् 2010 तदनुसार 29 मार्च, 1953 को फर्रुखाबाद जनपद के काली नदी के समीपस्थ छोटे से गाँव रायपुर में जनमे परम प्रज्ञ आचार्य रवींद्र शुक्ल क्रांतिकारी स्वभाव एवं राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत, ओजस्वी वक्ता, गंभीर चिंतक, दैनिक ‘राष्ट्रबोध’ जैसे सैद्धांतिक पत्र के संपादक, इतिहास और शास्त्रों के गंभीर अध्येता हैं। आपातकाल के दौरान लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा था। उ.प्र. विधानसभा में चार बार झाँसी का नेतृत्व किया। कृषि राज्य मंत्री एवं बेसिक शिक्षा मंत्री के रूप में अपनी कार्य शैली से अमिट छाप छोड़ी। स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ गीत की अनिवार्यता के ऐतिहासिक निर्णय के कारण उन्हें मंत्री पद भी गँवाना पड़ा।
अपनी प्रथम काव्य कृति ‘संकल्प’ से आरंभ साहित्यिक चेतना यात्रा ‘माँ’, ‘नगपति मेरा वंदन ले लो’, ‘भारत वंदे मातरम्’ आदि कृतियों का अभिषेक करती हुई इस महाकाव्य ‘शत्रुघ्न चरित’ तक पहुँची है। चिंतनपरक गद्य कृतियाँ ‘शिक्षा की प्राण प्रतिष्ठा’ एवं ‘वर्ण व्यवस्था की मौलिक अवधारणा और विकृति’ उनके बहु आयामी व्यक्तित्व एवं परम प्रज्ञ होने का शंखनाद करती हैं।
अपनी प्रथम काव्य कृति ‘संकल्प’ से आरंभ साहित्यिक चेतना यात्रा ‘माँ’, ‘नगपति मेरा वंदन ले लो’, ‘भारत वंदे मातरम्’ आदि कृतियों का अभिषेक करती हुई इस महाकाव्य ‘शत्रुघ्न चरित’ तक पहुँची है। चिंतनपरक गद्य कृतियाँ ‘शिक्षा की प्राण प्रतिष्ठा’ एवं ‘वर्ण व्यवस्था की मौलिक अवधारणा और विकृति’ उनके बहु आयामी व्यक्तित्व एवं परम प्रज्ञ होने का शंखनाद करती हैं।