Sattapur Ke Nakte

Sattapur Ke Nakte

by Gopal Chaturvedi

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  • ISBN13: 9788177212310
  • Binding: Paperback
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Literature & Fiction
जाहिर है कि इन अगडों का हाल भी बदहाल हो। लोग इनसे कतराएँ। इनका साया भी छुए तो नहाएँ। गुजारे के लिए बेचारे वही सब करें जो पहले दलितों ने किया। आज नहीं तो कल कोई-न-कोई जालिया फ्रॉडिया मसीहा चंद वोटों के खातिर अगड़ों की दुर्दशा पर कोई ‘बंडल’ रिपोर्ट लागू कर ही डाले। ऐसे जातीय जनगणना के आलोचकों से इस बात पर अपन हमराय हैं कि इसके बाद भारत में सिर्फ इनसान का अस्तित्व नामुमकिन है। उसके कोई-न-कोई जाति की दुम जरूर लगी रहेगी।
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सत्तापुर में पहली बार पधारे उस व्यक्ति ने फिर अपनी सदरी की जेब टटोली। इस बार उसकी चिंता पत्र की वह स्वीकृति थी, जो एम.पी. साहब ने उसकी अरजी के संदर्भ में भेजी थी। इसमें उनके निवास का पता और आवासीय फोन नंबर था। चुनाव के बाद सांसद अपने कर्तव्य के निर्वहन में इतने व्यस्त हो गए कि क्षेत्र में आने की फुरसत उन्हें कैसे मिलती? इलेक्शन के समय वह जब गाँव आए थे, तो उसने भतीजे की नौकरी का जिक्र किया था उनसे। बड़े स्नेह से उन्होंने उसे आश्वस्त किया था कि चुनाव वह जीतें या हारें, इसके बाद पहला काम वह यही करेंगे।
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हमें सूरमा भोपाली याद आते हैं। खुद तो कब के खुदा को प्यारे हो गए। बड़े प्यारे इनसान थे। आपातकाल में ‘हम दो, हमारे दो’ की जबरिया जर्राही से खासे खफा थे। आज खुश होते, कहते—‘भाई मियाँ, फौत संजय का मिशन खुद-बखुद पूरा हो गया।’ क्या नारा होगा, जानते हो? ‘जोड़ा हमारा, सबसे न्यारा!’ यह भी कह सकते हैं—‘प्यारे! अब क्या हीला-हवाला, बढ़ती आबादी पर हमने जड़ डाला अलीगढ़ी ताला।’
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वरिष्ठ व्यंग्य लेखक श्री गोपाल चतुर्वेदी के मानवीय संवेदना और मर्म को स्पर्श करते तीखे व्यंग्यों का रोचक संकलन।
गोपाल चतुर्वेदी का जन्म लखनऊ में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में। हमीदिया कॉलेज, भोपाल में कॉलेज का अध्ययन समाप्त कर उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। भारतीय रेल लेखा सेवा में चयन के बाद सन् १९६५ से १९९३ तक रेल व भारत सरकार के कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया।
छात्र जीवन से ही लेखन से जुड़े गोपाल चतुर्वेदी के दो काव्य-संग्रह ‘कुछ तो हो’ तथा ‘धूप की तलाश’ प्रकाशित हो चुके हैं। पिछले ढाई दशकों से लगातार व्यंग्य-लेखन से जुड़े रहकर हर पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। ‘सारिका’ और हिंदी ‘इंडिया टुडे’ में सालोसाल व्यंग्य-कॉलम लिखने के बाद प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ में उसके प्रथम अंक से नियमित कॉलम लिख रहे हैं। उनके दस व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें तीन ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’ और ‘राम झरोखे बैठ के’ को हिंदी अकादमी, दिल्ली का श्रेष्ठ ‘साहित्यिक कृति पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है।
भारत के पहले सांस्कृतिक समारोह ‘अपना उत्सव’ के आशय गान ‘जय देश भारत भारती’ के रचयिता गोपाल चतुर्वेदी आज के अग्रणी व्यंग्यकार हैं और उन्हें रेल का ‘प्रेमचंद सम्मान’, साहित्य अकादमी दिल्ली का ‘साहित्यकार सम्मान’, हिंदी भवन (दिल्ली) का ‘व्यंग्यश्री’, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण’ तथा अन्य कई सम्मान मिल चुके हैं।

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