Sankalp Kaal Speeches By Shri Atal Bihari Vajpayee

Sankalp Kaal Speeches By Shri Atal Bihari Vajpayee

by Dr. N.M. Ghatate

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  • ISBN13: 9789355627483
  • Binding: Hardcover
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Biography
श्री अटल बिहारी वाजपेयी के चिंतन और चिंता का विषय हमेशा ही संपूर्ण राष्ट्र रहा है। भारत और भारतीयता की संप्रभुता और संवर्द्धन की कामना उनके निजी एजेंडे में सर्वोपरि रही है। यह भावना और कामना कभी संसद में विपक्ष के सांसद के रूप में प्रकट होती रही, कभी कवि और पत्रकार के रूप में, कभी सांस्कृतिक मंचों से एक सुलझे हुए प्रखर वक्ता के रूप में और १९९६ से भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अभिव्यक्त हुई।

श्री वाजपेयी ने देश की सत्ता की बागडोर का दायित्व एक ट्रस्टी के रूप में ग्रहण किया। राष्ट्र के सम्मान और श्रीवृद्धि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। न किसी दबाव को आड़े आने दिया, न किसी प्रलोभन को। न किसी संकट से विचलित हुए, न किसी स्वार्थ से। फिर चाहे वह परमाणु परीक्षण हो, कारगिल समस्या हो, लाहौर-ढाका यात्रा हो या कोई और अंतरराष्ट्रीय मुद्दा।

इसी तरह राष्ट्रीय मुद्दों पर भी दो टूक और राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानते हुए निर्णय लिये- चाहे वह कावेरी विवाद हो या कोंकण रेलवे लाइन का मसला, संरचनात्मक ढाँचे का विकास हो या सॉफ्टवेयर के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी कार्यदल की स्थापना, केंद्रीय बिजली नियंत्रण आयोग का गठन हो या राष्ट्रीय राजमार्गों और हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति हो या आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने का सवाल, ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर जुटाने का मामला हो या विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए बीमा योजना।

अपने प्रधानमंत्रित्व काल में श्री वाजपेयी ने जो उपलब्धियाँ हासिल कीं, उन्हें दो शब्दों में कहा जा सकता है- जो कहा, वह कर दिखाया। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद भी उनकी कथनी और करनी एक ही बनी रही इसका प्रमाण हैं इस 'संकल्प-काल' में संकलित वे महत्त्वपूर्ण भाषण जो श्री वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में विभिन्न मंचों से दिए। अपनी बात को स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहना अटलजी जैसे निर्भय और सर्वमान्य व्यक्ति के लिए सहज और संभव रहा है। लाल किला से लाहौर तक, संसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा तक विस्तृत विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों से दिए गए इन भाषणों से बार-बार एक ही सत्य एवं तथ्य प्रमाणित और ध्वनित होता है-श्री वाजपेयी के स्वर और शब्दों में भारत राष्ट्र राज्य के एक अरब लोगों का मौन समर्थन और भावना समाहित है।

प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित 'मेरी संसदीय यात्रा' (चार खंडों में) के बाद 'संकल्प काल' का प्रकाशन अटलजी के पाठकों और उनके विचारों के संग्राहकों के लिए एक और उपलब्धि है।
डॉ. ना.मा. घटाटे

इन ग्रंथों के संपादक डॉ. नारायण माधव घटाटे ने विधि आयोग के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान की सेवा की; इससे पूर्व डॉ. घटाटे पिछले ३० वर्षों से उच्चतम न्यायालय में वकालत करते रहे।

डॉ. घटाटे ने स्नातक की उपाधि नागपुर विश्वविद्यालय से एल-एल.बी. दिल्ली विश्वविद्यालय से, स्नातकोत्तर और पी- एच.डी. की उपाधि विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग, अमेरिकन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन से प्राप्त कीं। अमेरिका में अध्ययन के दौरान विश्वविद्यालय के विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग में सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विविध विषयों के अध्यापक भी रहे।

श्री घटाटे ने स्नातकोत्तर शोधप्रबंध 'चीन-बर्मा सीमा विवाद' पर और पी-एच.डी. शोधप्रबंध 'भारतीय विदेश नीति में निरस्त्रीकरण' विषय पर लिखा। उन्होंने संविधान, अंतरराष्ट्रीय संबंध और समसामयिक विषयों पर अनेक शोध- लेख लिखे ।

उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे डॉ. घटाटे ने १९७५ के आपातकाल के दौरान नजरबंद सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से पैरवी की। डॉ. घटाटे १९७३ से १९७७ तक भारतीय जनसंघ और १९८८ से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे।

डॉ. घटाटे ने 'मेरी संसदीय यात्रा' से पूर्व अटलजी के संसदीय भाषणों पर केंद्रित 'संसद में तीन दशक' और 'फोर डिकेड्स इन पार्लियामेंट' पुस्तकों का भी संपादन किया। इनके अतिरिक्त 'भारत-सोवियत संधि: प्रतिक्रियाएँ और विचार', 'बँगलादेश : संघर्ष और परिणाम' और 'आपातकाल हटाओ'

शीर्षक पुस्तकों का सफल लेखन-संपादन किया। स्मृतिशेषः - २४ जनवरी, २०२१।

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