Sanatan Sang Bharat
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- ISBN13: 9789355627124
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Religion & Spirituality
‘सनातन संग भारत...’ यह एक ऐसा विषय था, जब इसकी असली परीक्षा वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान होनी थी। इस आलेख का उद्देश्य किसी राजनीतिक परिदृश्य की ओर ले जाना नहीं, बल्कि यह बताना है कि आज का भारत सनातन और सनातनी व्यवस्था को मानने वाले राजनीतिक दलों के साथ खड़ा है। गत छह दशक में यह पहली बार हुआ कि कोई प्रधानमंत्री लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटा है।
1962 के बाद कि सी प्रधानमंत्री को पहली बार तीसरा कार्यकाल मिला है। वर्ष 2014 से चल रही एन.डी.ए. नेतृत्व की केंद्र सरकार के दो टर्म पूरा करने के बावजूद वर्ष 2024 में एन.डी.ए. को जनता ने पूर्ण समर्थन दिया, तो वहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 240 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में पुनः उभरी। फिर से कह दें कि यह तब था, जब दस वर्ष की केंद्र सरकार का टर्म पूरा हो चुका था। अमूमन इतने समय में सत्ता विरोधी लहर उठनी शुरू हो जाती है, सरकार पर कई तरह से आरोप लग चुके होते हैं, जनता परिवर्तन का मन बनाने लगती है।
सरकार बदल दी जाती है; विशेषकर संचार के इस युग में, जहाँ एक क्लिक मात्र से व्यक्ति लोकप्रिय और बदनामी के दायरे में आ जाता है, वहाँ बेदाग होकर सरकार चला लेना और फिर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना लेना, यह सनातन के संस्कार की ताकत है। इस जनादेश ने बता दिया कि आज देश सनातन के विषय पर कोई समझौता नहीं करेगा। देश सनातन के साथ खड़ा है। एन.डी.ए. के घटक दल यह मानने लगे कि भारत में राजनीति करनी है तो सनातनी सोच और कार्यपद्धति को मनमस्तिष्क में रखना होगा।
1962 के बाद कि सी प्रधानमंत्री को पहली बार तीसरा कार्यकाल मिला है। वर्ष 2014 से चल रही एन.डी.ए. नेतृत्व की केंद्र सरकार के दो टर्म पूरा करने के बावजूद वर्ष 2024 में एन.डी.ए. को जनता ने पूर्ण समर्थन दिया, तो वहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 240 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में पुनः उभरी। फिर से कह दें कि यह तब था, जब दस वर्ष की केंद्र सरकार का टर्म पूरा हो चुका था। अमूमन इतने समय में सत्ता विरोधी लहर उठनी शुरू हो जाती है, सरकार पर कई तरह से आरोप लग चुके होते हैं, जनता परिवर्तन का मन बनाने लगती है।
सरकार बदल दी जाती है; विशेषकर संचार के इस युग में, जहाँ एक क्लिक मात्र से व्यक्ति लोकप्रिय और बदनामी के दायरे में आ जाता है, वहाँ बेदाग होकर सरकार चला लेना और फिर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना लेना, यह सनातन के संस्कार की ताकत है। इस जनादेश ने बता दिया कि आज देश सनातन के विषय पर कोई समझौता नहीं करेगा। देश सनातन के साथ खड़ा है। एन.डी.ए. के घटक दल यह मानने लगे कि भारत में राजनीति करनी है तो सनातनी सोच और कार्यपद्धति को मनमस्तिष्क में रखना होगा।
अश्विनी कुमार चौबे
शिक्षण एवं लेखन : स्नातक (प्रतिष्ठा) प्राणी शास्त्र, साइंस कॉलेज, पटना, पटना विश्वविद्यालय। सामाजिक जीवन : बाल्यकाल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, विद्यार्थी परिषद् के पूर्णकालिक कार्यकर्ता, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के आंदोलन में सक्रिय सहभागिता। राजनीतिक जीवन : पाँच बार भागलपुर से बिहार विधानसभा सदस्य निर्वाचित, भाजपा बिहार विधानमंडल दल के नेता, बिहार सरकार में मंत्री, बक्सर से दो बार सांसद निर्वाचित, भारत सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रहे। पुस्तक : त्रिनेत्र (केदारनाथ त्रासदी के द्रष्टा व भुक्तभोगी के रूप में अनुभवों व वस्तुस्थिति का प्रामाणिक दस्तावेज)।
कुमार सुशांत
लेखन, साहित्यिकसांस्कृतिकधार्मिक सोच एवं कर्तव्यों के लिए एक सुपरिचित नाम हैं। मूलतः बिहार राज्य के भागलपुर जिले से हैं तथा वर्तमान में नई दिल्ली में रहते हैं। वर्ष 2007 से वर्ष 2014 तक विभिन्न राज्यों में सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े रहे तथा वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2018 तक भारत सरकार में सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। रामायण रिसर्च काउंसिल के महासचिव हैं तथा काउंसिल के बैनर तले कई साहित्यिक रचनाओं को पूर्ण किया है।
शिक्षण एवं लेखन : स्नातक (प्रतिष्ठा) प्राणी शास्त्र, साइंस कॉलेज, पटना, पटना विश्वविद्यालय। सामाजिक जीवन : बाल्यकाल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, विद्यार्थी परिषद् के पूर्णकालिक कार्यकर्ता, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के आंदोलन में सक्रिय सहभागिता। राजनीतिक जीवन : पाँच बार भागलपुर से बिहार विधानसभा सदस्य निर्वाचित, भाजपा बिहार विधानमंडल दल के नेता, बिहार सरकार में मंत्री, बक्सर से दो बार सांसद निर्वाचित, भारत सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रहे। पुस्तक : त्रिनेत्र (केदारनाथ त्रासदी के द्रष्टा व भुक्तभोगी के रूप में अनुभवों व वस्तुस्थिति का प्रामाणिक दस्तावेज)।
कुमार सुशांत
लेखन, साहित्यिकसांस्कृतिकधार्मिक सोच एवं कर्तव्यों के लिए एक सुपरिचित नाम हैं। मूलतः बिहार राज्य के भागलपुर जिले से हैं तथा वर्तमान में नई दिल्ली में रहते हैं। वर्ष 2007 से वर्ष 2014 तक विभिन्न राज्यों में सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े रहे तथा वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2018 तक भारत सरकार में सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। रामायण रिसर्च काउंसिल के महासचिव हैं तथा काउंसिल के बैनर तले कई साहित्यिक रचनाओं को पूर्ण किया है।