Sanatan Parampara Ka Mahaparva Mahakumbh
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- ISBN13: 9789355629883
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Religion & Spirituality
महाकुंभ-2025 में अब तक लगभग 44 करोड़ श्रद्धालुओं की पावन डुबकी के साथ 50 करोड़ की संख्या पार करने के अद्यतन अनुमान ने इस महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन सिद्ध कर दिया है। योगी आदित्यनाथजी महाराज की तपस्यारत योजनाओं, स्वच्छता, सुरक्षा, तकनीक और सुव्यवस्था के कारण महाकुंभ-2025 हमेशा याद किया जाएगा। दिव्य-नव्य-भव्य महाकुंभ सनातन संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक बना है, किंतु महाकुंभ- 2025 जितना अपनी दिव्यता भव्यता एवं सुव्यवस्था के लिए याद किया जाएगा, उत्तना ही उत्तर प्रदेश के यशस्वी तपस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथजी महाराज के रुँधे गले और उनके आँसुओं के कारण भी याद किया जाएगा। मौनी अमावस्या के अमृत-स्नान पर क्षण भर के लिए घटित उस अनहोनी रूपी विष को पीते हुए जब इस संन्यासी योगी के आँसुओं की दुनिया साक्षी बनी।
दुनिया देख रही थी कि राष्ट्र-समाज और विश्व को सनातन संस्कृति का अमृत-पान कराने में तपस्यारत एक संन्यासी-योगी दिन-रात एक किए हुए था, एक-एक श्रद्धालु की सुविधा की चिंता कर रहा था, संभवतः किंचित् षड्यंत्रों और श्रद्धालुओं की असावधानी से मुख्य अमृत स्नान पर घटित एक अनहोनी से उस संन्यासी-योगी को वह गरल पीना पड़ा, जो समुद्रमंथन की तरह अनायास निकल आया था और भगवान् शिव की तरह लोककल्याणार्थ पीना ही था। यद्यपि सनातन परंपरा के वाहक किसी भी सनातनी ने उसे अनहोनी ही माना और पूज्य योगी आदित्यनाथजी महाराज के आँसुओं को अमृत-बूंद मानकर उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण कर लिया।
दुनिया देख रही थी कि राष्ट्र-समाज और विश्व को सनातन संस्कृति का अमृत-पान कराने में तपस्यारत एक संन्यासी-योगी दिन-रात एक किए हुए था, एक-एक श्रद्धालु की सुविधा की चिंता कर रहा था, संभवतः किंचित् षड्यंत्रों और श्रद्धालुओं की असावधानी से मुख्य अमृत स्नान पर घटित एक अनहोनी से उस संन्यासी-योगी को वह गरल पीना पड़ा, जो समुद्रमंथन की तरह अनायास निकल आया था और भगवान् शिव की तरह लोककल्याणार्थ पीना ही था। यद्यपि सनातन परंपरा के वाहक किसी भी सनातनी ने उसे अनहोनी ही माना और पूज्य योगी आदित्यनाथजी महाराज के आँसुओं को अमृत-बूंद मानकर उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण कर लिया।
डॉ. प्रदीप कुमार राव का जन्म 1 मई, 1970 को देवरिया जनपद के नगवाखास गाँव में हुआ। उनकी संपूर्ण उच्च शिक्षा-दीक्षा गोरखपुर में संपन्न हुई। उनका अध्यापन अनुभव 27 वर्ष का है। उन्होंने 12 पुस्तकों का लेखन एवं 9 पुस्तकों का संपादन किया है। साथ ही 14 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सत्र की अध्यक्षता; 78 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रतिभाग किया है। 45 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं। सन् 2007 से 'विमर्श' (वार्षिकी) तथा सन् 2009 से 'मानविकी' (अर्द्ध वार्षिकी) शोध- पत्रिकाओं का संपादन कर रहे हैं। साप्ताहिक समाचार-पत्र 'हिंदवी' के संपादक रहे तथा श्री गोरखनाथ मंदिर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'योगवाणी' के प्रबंध संपादक हैं।
डॉ. राव सात सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक सदस्य हैं। वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारिणी सदस्य एवं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर की कार्यपरिषद के सदस्य रहे हैं। वे पाँच इंटर कॉलेज, दो डिग्री कॉलेज की प्रबंध समिति के सदस्य तथा तीन सेवा संस्थाओं के प्रबंध कार्यकारिणी के सदस्य हैं। 2005 से महाराणा प्रताप पी.जी. कॉलेज, जंगल धूसड़, गोरखपुर के संस्थापक प्राचार्य हैं। संप्रति कुलसचिव, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर, आरोग्य धाम, गोरखपुर ।
डॉ. राव सात सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक सदस्य हैं। वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारिणी सदस्य एवं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर की कार्यपरिषद के सदस्य रहे हैं। वे पाँच इंटर कॉलेज, दो डिग्री कॉलेज की प्रबंध समिति के सदस्य तथा तीन सेवा संस्थाओं के प्रबंध कार्यकारिणी के सदस्य हैं। 2005 से महाराणा प्रताप पी.जी. कॉलेज, जंगल धूसड़, गोरखपुर के संस्थापक प्राचार्य हैं। संप्रति कुलसचिव, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर, आरोग्य धाम, गोरखपुर ।