Rashmihar By Rabindra Nath Thakur
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- ISBN13: 9789348724809
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
रश्मीहार रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ टैगोर) की एक महत्वपूर्ण काव्यात्मक रचना है, जो उनके गहरे विचारों, समाज के प्रति उनकी दृष्टि और मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती है। यह काव्य रचना भारतीय समाज की जटिलताओं, मानवीय संबंधों, और जीवन के गहरे सत्य को दर्शाती है। रवींद्रनाथ के साहित्य में एक अद्भुत दार्शनिकता, प्रेम, और मानवता के प्रति संवेदनशीलता नज़र आती है, जो इस काव्य में भी पूरी तरह से परिलक्षित होती है।
यह रचना न केवल एक काव्यात्मक अनुभव है, बल्कि यह पाठकों को आंतरिक शांति, उद्देश्य और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती है। टैगोर का साहित्य हर युग में प्रासंगिक रहता है, और रश्मीहार इसकी उत्कृष्ट मिसाल है।
यह रचना न केवल एक काव्यात्मक अनुभव है, बल्कि यह पाठकों को आंतरिक शांति, उद्देश्य और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती है। टैगोर का साहित्य हर युग में प्रासंगिक रहता है, और रश्मीहार इसकी उत्कृष्ट मिसाल है।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा में उनकी अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की आयु में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की आयु में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।