Rakta Ka Kan-Kan Samarpit
₹350.00
₹298.00
14% OFF
Ships in 1 - 2 Days
Secure Payment Methods at Checkout
- ISBN13: 9789355213662
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
विश्व के शीर्ष राष्ट्रों में शुमार भारतवर्ष को देखकर आज किस भारतीय का सीना चौड़ा नहीं होता होगा; लेकिन आज बराबरी और सम्मान के जिस मुकाम पर हम खड़े हैं, वहाँ हम यों ही नहीं पहुँचे हैं। इसके लिए हमें अनगिनत कुरबानियाँ देनी पड़ी हैं, लाखों जवानियाँ काल-कोठरी के पीछे खुशी- खुशी कैद हुई हैं। उनमें से कुछ को ही हम जानते हैं और बाकियों की स्मृति कस्बों एवं गाँवों में सिमटकर रह गई है।
यह पुस्तक ऐसे ही गुमनाम स्वातंत्र्य साथकों के बारे में है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारतमाता की स्वाधीनता के लिए हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया, पर वे इतिहास की नामचीन क्या, साधारण सी पुस्तकों का भी हिस्सा नहीं बन सके। वैसे यह उनको इच्छा भी नहीं थी कि उनका नाम हो, लेकिन आज को युवा पीढ़ी और स्कूली बच्चों को उनके बारे में जानना आवश्यक है कि वे कौन महापुरुष थे। 'जरा याद उन्हें भी कर लो' इसी उद्देश्य को लेकर कहानी-दर-कहानी मजबूती से आगे बढ़ती है। चिरंजीव सिन्हा की पुस्तक ' रक्त का कण-कण समर्पित” उत्तर प्रदेश के गुमनाम स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरक गाथाओं का पठनीय संकलन है।
यह पुस्तक ऐसे ही गुमनाम स्वातंत्र्य साथकों के बारे में है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारतमाता की स्वाधीनता के लिए हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया, पर वे इतिहास की नामचीन क्या, साधारण सी पुस्तकों का भी हिस्सा नहीं बन सके। वैसे यह उनको इच्छा भी नहीं थी कि उनका नाम हो, लेकिन आज को युवा पीढ़ी और स्कूली बच्चों को उनके बारे में जानना आवश्यक है कि वे कौन महापुरुष थे। 'जरा याद उन्हें भी कर लो' इसी उद्देश्य को लेकर कहानी-दर-कहानी मजबूती से आगे बढ़ती है। चिरंजीव सिन्हा की पुस्तक ' रक्त का कण-कण समर्पित” उत्तर प्रदेश के गुमनाम स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरक गाथाओं का पठनीय संकलन है।
मूल रूप से पटना निवासी चिरंजीव सिन्हा वर्तमान में लखनऊ में अपर पुलिस उपायुक्त हैं। उनका मानना है कि नौका का नाविक मंजिल पर दृष्टि अवश्य टिकाए रहता है, परंतु पीछे छोड़ी लहरों का आभार व्यक्त करना वह कदापि नहीं भूलता, क्योंकि उन्हीं लहरों ने उसके आगे का पथ प्रशस्त किया है। इतिहास का सम्यक् दृष्टिबोध लेकर ही हम आगे आनेवाले कालखंड के लिए भावभूमि बना सकते हैं । यही उनके लेखन का दृष्टिबोध है। सरल और सामान्य भाषा-शैली का प्रयोग अंत तक पाठकों को उनकी रचनाओं से बाँधे रखता है।
उनकी दो पुस्तकें ' अनुभूति' और “जिंदगी की रेले रे” को भारत के आमजन ने खूब प्यार दिया है। ' अनुभूति' पुस्तक के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने “नरेश मेहता सर्जना पुरस्कार' और “जिंदगी की रेले रे' के लिए उ.प्र. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ने 'डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार' दिया है। उनकी कहानियाँ अहा जिंदगी, सरिता, गृहलक्ष्मी, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला में अकसर प्रकाशित होती रहती हैं। इ-मेल : chiranjeevstf@gmail.com
उनकी दो पुस्तकें ' अनुभूति' और “जिंदगी की रेले रे” को भारत के आमजन ने खूब प्यार दिया है। ' अनुभूति' पुस्तक के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने “नरेश मेहता सर्जना पुरस्कार' और “जिंदगी की रेले रे' के लिए उ.प्र. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ने 'डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार' दिया है। उनकी कहानियाँ अहा जिंदगी, सरिता, गृहलक्ष्मी, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला में अकसर प्रकाशित होती रहती हैं। इ-मेल : chiranjeevstf@gmail.com