Rajarshi | Char Adhyay By Rabindra Nath Thakur
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- ISBN13: 9789348724724
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
राजर्षि की कहानी एक राजा की है, जो सत्ता और भौतिक सुखों में लिप्त होने के बावजूद अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानता है। राजा, जो पहले दुनियावी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं में बंधा था, बाद में समझता है कि असली सुख और शांति सिर्फ बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, सत्य, और ज्ञान से मिलती है। उपन्यास में राजा का आध्यात्मिक रूपांतरण और उसके भीतर की आत्मिक यात्रा को दर्शाया गया है।
चार अध्याय में चार अलग-अलग अध्यायों के माध्यम से रवींद्रनाथ ने समाज और मानवता के विविध आयामों को चित्रित किया है। उपन्यास में पात्रों के बीच के रिश्तों, उनके मानसिक संघर्षों, और जीवन के प्रति उनकी दृष्टिकोण को बताया गया है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि कैसे समाज के आदर्शों और जीवन के सत्य को पहचानने की यात्रा व्यक्तिगत और सामाजिक विकास की दिशा में आवश्यक होती है।
चार अध्याय में चार अलग-अलग अध्यायों के माध्यम से रवींद्रनाथ ने समाज और मानवता के विविध आयामों को चित्रित किया है। उपन्यास में पात्रों के बीच के रिश्तों, उनके मानसिक संघर्षों, और जीवन के प्रति उनकी दृष्टिकोण को बताया गया है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि कैसे समाज के आदर्शों और जीवन के सत्य को पहचानने की यात्रा व्यक्तिगत और सामाजिक विकास की दिशा में आवश्यक होती है।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा में उनकी अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की आयु में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की आयु में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।