Raja | Dakghar By Rabindra Nath Thakur

Raja | Dakghar By Rabindra Nath Thakur

by Rabindra Nath Thakur

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  • ISBN13: 9789348724281
  • Binding: Paperback
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Literature
नाटक राजा में रवींद्रनाथ ने राजा की सत्ता और उसके निर्णयों के प्रभाव को दिखाया है। राजा को यह अहसास होता है कि सत्ता के पास केवल बाहरी शक्ति है, लेकिन वह मानवता और सत्य की शक्ति से दूर हो जाता है। नाटक में एक पात्र की सामाजिक स्थिति और उसके आंतरिक संघर्षों को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से चित्रित किया गया है। यहाँ पर सत्ता का एक गहरा प्रभाव दिखाया गया है, जिससे व्यक्ति के आंतरिक और मानसिक शांति का क्षरण होता है।

नाटक डाकघर का मुख्य पात्र आशा नामक एक छोटा बच्चा है, जो एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और उसे बाहरी दुनिया के संपर्क में आने की अनुमति नहीं होती। वह अपनी बीमारी के कारण घर के अंदर ही रहता है, लेकिन उसकी कल्पना और मानसिक स्थिति उसे दुनिया के रंगीन पहलुओं का अनुभव करने का अवसर देती है।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा में उनकी अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की आयु में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की आयु में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई।

भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।

स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।

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