Padaav

Padaav

by Amar Goswami

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  • ISBN13: 9789383110681
  • Binding: Paperback
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Self-Help Groups
प्रसन्न बाबा ने रघु के लाए दूध के बरतन को देवी के सामने रख दिया। बोले, ‘‘माँ, अपने एक भक्त की लाई हुई भेंट ग्रहण करो। आज इसी से हम तुम्हारी पूजा प्रारंभ कर रहे हैं।’’ बनवारी दौड़कर कुछ फूल तोड़ लाया। प्रसन्न बाबा ने उसे देवी के चरणों में चढ़ा दिया। पूजा के बाद प्रसन्न बाबा ने वही दूध प्रसाद के रूप में सबको बाँट दिया। बचा हुआ प्रसाद उन्होंने खुद भी ग्रहण किया। रघु ने कहा, ‘‘बाबाजी, दूध तो आपके लिए लाया था। आप थके हुए थे। भूखे भी होंगे। आपने इस दूध को हम सबमें बाँट दिया। आपके लिए और दूध ले आऊँ?’’
इसी उपन्यास से

आज के संत समाज को आईना दिखानेवाला ऐसा उपन्यास, जिसके नायक प्रसन्न बाबा बिना कोई काम किए किसी से भिक्षा तक नहीं लेते। वह भिक्षा के बदले गृहस्थों से काम देने का आग्रह करते हैं। वह समाज पर बोझ नहीं बनना चाहते, बल्कि एक अनुपम आदर्श बनना चाहते हैं। संत होकर एक सिपाही, एक किसान, एक मजदूर की तरह पसीना बहाते हैं। समाज की आँखें खोलनेवाला अत्यंत रोचक एवं प्रेरणाप्रद उपन्यास।
अमर गोस्वामी
जन्म : 28 नवंबर, 1944 को मुलतान में एक बांग्लाभाषी परिवार में।
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य)।
दो महाविद्यालयों में अध्यापन। फिर पत्रकारिता में सक्रिय। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और प्रकाशन केंद्रों में संपादन सहयोग के बाद अब पूर्णतया लेखन।
प्रकाशन : ‘हिमायती’, ‘महुए का पेड़’, ‘अरण्य में हम’, ‘उदास राघोदास’, ‘बूजो बहादुर’, ‘धरतीपुत्र’, ‘महाबली’, ‘इक्कीस कहानियाँ’, ‘अपनी-अपनी दुनिया’, ‘बल का मनोरथ’ के बाद ‘तोहफा तथा अन्य चर्चित कहानियाँ’ प्रकाशित। ‘इस दौर में हमसफर’ उपन्यास के बाद दूसरा उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य। बाल उपन्यास ‘शाबाश मुन्नू’ के अलावा बच्चों की बीस से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित। बँगला से हिंदी में अनुवाद की पचास से अधिक पुस्तकें। कुछ कहानियों का टी.वी. रूपांतरण भी।
सम्मान-पुरस्कार : रचना-कर्म के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली, हिंदी अकादमी दिल्ली, उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ, शब्दों-सोवियत लिटरेरी क्लब तथा अन्य संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत-सम्मानित।
स्मृतिशेष : 26.5.2012

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