Nyaya Vyavastha Par Vyangya

Nyaya Vyavastha Par Vyangya

by Giriraj Sharan Agrawal

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  • ISBN13: 9789352664108
  • Binding: Hardcover
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): General
न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य
हमारे एक परममित्र हुए हैं घसीटासिंह ' मुकदमेबाज ' । कई मामलों में बड़े ही विचित्र स्वभाव के आदमी थे । हमें जब यह विचार आया कि न्यायालयों के बारे में जानकारी प्राप्‍त करने के लिए कुछ अनुभवी लोगों से संपर्क करें तो याद आए श्री घसीटासिंह जी! क्योंकि उनके जीवन की एकमात्र ' हॉबी ' ही मुकदमेबाजी रही थी । आप मानें या न मानें, जितनी भी हाबियाँ हैं, उनमें सबसे रोचक अगर कोई है तो मुकदमेबाजी है । बस, शर्त यह है कि आपको मुकदमा लड़ना और दाँव- पेच से काम लेना आता हो ।
एक दिन हमारे भूतपूर्व मित्र घसीटासिंह ' मुकदमेबाज ' ने यह कहकर हमें चौंका दिया था कि अदालत में असली मुकदमों की मात्रा, ईश्‍वर झूठ न बुलवाए, तो बस इतनी ही होती है, जितनी प्राचीन युग से लेकर अब तक उड़द पर सफेदी या वर्तमान में पानी मे दूध की मात्रा । घसीटासिह ' मुकदमेबाज ' का कहना था कि अदालत में चलने वाले ज्यादातर मुकदमे फर्जी होते हैं, जिनसे या तो मुकदमेबाजों की हॉबी गरी होती है या जो अपने विरोधियों को परेशान करने के लिए ठोक दिए जाते हैं । गवाहों के अलावा मुकदमेबाजों को कई और चीजें भी खरीदनी होती हैं; जैसे वकील, चपरासी, पेशकार आदि- आदि । खेद यह है कि जब कोई अनुभवहीन व्यक्‍त‌ि कोर्ट या अदालत की कल्पना करता है तो उसके ध्यान में केवल जज या मुंसिफ मजिस्ट्रेट का ही चेहरा उभरता है, जबकि अदालत केवल इसी एक महापुरुष का नाम नहीं है ।
न्यायालयों की व्यवस्था पर अपनी पैनी नजर डालनेवाले व्यंग्यकारों के ये व्यंग्य आपको हँसाएँगे भी और व्यंग्य स्‍थलों पर सताएँगे भी ।
गिरिराजशरण
जन्म : सन् 1944, संभल (उप्र.)
डॉ. गिरिराज शरण की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरतसाहित्य-साधनामेरत आपकी लिखी एवं संपादित एक सौ के लगभग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की प्राय: प्रत्येक विधा में साहित्य-सृजन किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता से स्वीकार किया गया है ।
कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध और बाल साहित्य के लेखन में 'गतिपूर्वक संलग्न डॉ. गिरिराज वर्तमान में वर्धमान महाविद्यालय, बिजनौर (उप्र.) के स्नातकोत्तर एवं शोध विभाग में वरिष्‍ठ हिंदी प्रवक्‍ता हैं ।
हिंदी शोध तथा संदर्भ-साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनकेविशिष्‍ट ग्रंथों- शोध-संदर्भ (तीन भाग), तुलसीमानस संदर्भ तथा सूर साहित्य-संदर्भ-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हैं ।

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