Kya Aapka Bachcha Surakshit Hai?
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- ISBN13: 9789352669035
- Binding: Hardcover
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): General
यह पुस्तक माता-पिता को अपने बच्चों को ऑनलाइन खतरों से सुरक्षित रखने के लिए उपयोगी सूचना और सलाह देनेवाली गाइड से कहीं अधिक है। इसमें इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े खतरों और संभावित जोखिमों के बारे में विस्तार से बताया गया है। पुस्तक पाठकों को यह भी बताती है कि कैसे तकनीक-प्रेमी बच्चे भी खतरनाक साइबर-जगत् को खँगालने के दौरान चूक कर जाते हैं।
लेखक ने चेतावनी के उन संकेतों और लक्षणों को भी पूरी बारीकी से गिनाया है, जो उन बच्चों में दिखते हैं, जिनका सामना ऑनलाइन खतरों से होता है। साथ ही उनसे उबरने के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। यह पुस्तक बच्चों को पर्याप्त कौशल देने, डिजिटल दृढ़ता और दबावों को झेलने की क्षमता विकसित करने पर अधिक जोर देती है। बहुत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में कुछ भी काल्पनिक नहीं है। यह वास्तविक घटनाओं और समर्पित पुलिस अधिकारी के रूप में लेखक द्वारा 12 साल के अपने कॉरियर के दौरान मिले अनुभवों पर आधारित है।
बच्चों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खतरों तथा इनके यथोचित उपयोग से परिचित कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।
लेखक ने चेतावनी के उन संकेतों और लक्षणों को भी पूरी बारीकी से गिनाया है, जो उन बच्चों में दिखते हैं, जिनका सामना ऑनलाइन खतरों से होता है। साथ ही उनसे उबरने के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। यह पुस्तक बच्चों को पर्याप्त कौशल देने, डिजिटल दृढ़ता और दबावों को झेलने की क्षमता विकसित करने पर अधिक जोर देती है। बहुत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में कुछ भी काल्पनिक नहीं है। यह वास्तविक घटनाओं और समर्पित पुलिस अधिकारी के रूप में लेखक द्वारा 12 साल के अपने कॉरियर के दौरान मिले अनुभवों पर आधारित है।
बच्चों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खतरों तथा इनके यथोचित उपयोग से परिचित कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।
के. संजय कुमार गुरुदीन 2005 बैच (केरल कैडर) के आई.पी.एस. अधिकारी हैं। केरल में और एन.आई.ए., लखनऊ में पुलिस अधीक्षक के रूप में उनका कॉरियर शानदार रहा है। सामाजिक रूप से जागरूक पुलिस अधिकारी होने के कारण छात्रोंं को मादक द्रव्यों के सेवन तथा सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूक कराते रहे हैं। हालाँकि, उनकी सबसे बड़ी चिंता हमेशा से ही ‘इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग’ को लेकर रही है और प्रभावित बच्चों से उनकी बातचीत ने ही उन्हें इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया।