Kuchh Musafir Sath The
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- ISBN13: 9789390825165
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
इन दिनों हिंदी साहित्य में कथेतर गद्य को महत्त्व की दृष्टि से देखे जाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है और उसमें पाठकों की रुचि निरंतर अनुभव की जा रही है। कुछ अभिनव प्रयोग भी किए जा रहे हैं। वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र राव ने संस्मरण, स्मृति-लेख और रेखाचित्र जैसी विधाओं की त्रिवेणी को कथात्मक संस्मरण के रूप में प्रस्तुत करकेकथा और कथेतर के बीच की फाँक को न्यूनतम करने का एक सफल रचनात्मक प्रयास किया है, जो कथात्मक संस्मरणों के इसअत्यंत पठनीय संकलन में द्रष्टव्य है।
इनके बारे में लेखक का कहना है, स्मृति जैसे रंग-बिरंगे फलों से लदा वृक्ष है। इनमें कुछ मीठे हैं, कुछ खट्टे और कुछ कड़वे भी, मगर बेस्वाद कोई नहीं है। इनमें से कुछ को स्वाद की तीव्रता के क्रम से हम यादों में सँजोए रखते हैं कहानियों के रूप में। हर याद रह गए चेहरे के पीछे एक या एक से अधिक कहानी/कहानियाँ होती हैं। स्मृति-पटल पर गहरे खुदे व्यक्तियों के ये रेखाचित्र/संस्मरण न होकर उनकी कहानियाँ हैं।
साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग में प्रकाशित राजेंद्र राव की धारावाहिक कथा-शृंखलाएँ ‘सूली ऊपर सेज पिया की’, ‘कोयला भई न राख’ और ‘हम विषपायी जनम के’ अत्यंत चर्चित और लोकप्रिय रही हैं। विश्वास है, कथात्मक संस्मरणों के इस सिलसिले का भी भरपूर स्वागत होगा।
इनके बारे में लेखक का कहना है, स्मृति जैसे रंग-बिरंगे फलों से लदा वृक्ष है। इनमें कुछ मीठे हैं, कुछ खट्टे और कुछ कड़वे भी, मगर बेस्वाद कोई नहीं है। इनमें से कुछ को स्वाद की तीव्रता के क्रम से हम यादों में सँजोए रखते हैं कहानियों के रूप में। हर याद रह गए चेहरे के पीछे एक या एक से अधिक कहानी/कहानियाँ होती हैं। स्मृति-पटल पर गहरे खुदे व्यक्तियों के ये रेखाचित्र/संस्मरण न होकर उनकी कहानियाँ हैं।
साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग में प्रकाशित राजेंद्र राव की धारावाहिक कथा-शृंखलाएँ ‘सूली ऊपर सेज पिया की’, ‘कोयला भई न राख’ और ‘हम विषपायी जनम के’ अत्यंत चर्चित और लोकप्रिय रही हैं। विश्वास है, कथात्मक संस्मरणों के इस सिलसिले का भी भरपूर स्वागत होगा।
राजेंद्र राव—कोटा (राजस्थान) में जनमे राजेंद्र राव शिक्षा तथा व्यवसाय से यांत्रिक अभियंता रहे हों, लेकिन उनका साहित्य और पत्रकारिता से गहरा जुड़ाव रहा है। सातवें दशक में लघु उद्योगों में कॅरियर शुरू करने के बाद कुछ अत्याधुनिक और विशिष्ट गैर-सरकारी तथा सरकारी संस्थानों में तकनीकी एवं प्रबंधन के प्रशिक्षण में कार्यरत रहते हुए कथा और कथेतर गद्य लेखन तो किया ही, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित कॉलम-लेखन भी किया। पहली कहानी ‘शिफ्ट’ कहानी पत्रिका में प्रकाशित हुई और उसके बाद विभिन्न पत्रिकाओं में कहानियाँ, धारावाहिक, उपन्यास और कथा-शृंखलाएँ, रिपोर्ताज तथा नियमित स्तंभों का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ, जो पाँच दशक बाद आज भी मंथर गति से जारी है। तकनीकी क्षेत्र में पारी समाप्त होते ही साहित्यिक पत्रकारिता में आ गए। अभी तक उनके बारह कहानी-संग्रह, दो उपन्यास और कथेतर लेखन के दो संकलन प्रकाशित हुए।
संप्रति दैनिक जागरण में साहित्य-संपादन।
संपर्क : 374 ए-2, तिवारीपुर, जेजे रेयन गेट नं. 2 के सामने, जाजमऊ, कानपुर-208010
मो : 9935266693
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