Jharkhand Ki Adivasi Kala Parampara
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- ISBN13: 9789355213938
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
प्राकृतिक संपदाओं और सौंदर्य से परिपूर्ण झारखंड कला की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है। दशकों पहले जब हजारीबाग के पास इसको के शैलचित्रों की खोज हुई थी, तब दुनिया ने जाना कि हमारे पूर्वज कितने कुशल चितेरे थे । ऐसी अनेक आकृतियों एवं निशानों से पटी पड़ी है झारखंड की धरती अब शोधकर्ता भी प्रकृति की इस अद्भ्रुत रचना का मर्म समझने में लगे हैं। संताल समाज के लोगों द्वारा सदियों से 'जादोपटिया कला' के प्रति खासा रुझान देखा गया है। इनके चित्रों में जीवन का जितना गहरा सार है, उतना ही गहरा रेखाओं का विस्तार है । यह कला संताली समाज में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रही है।
झारखंड का जनजातीय समाज इतना हुनरमंद है कि अपनी जरुरत की चीज से लेकर अन्य समाज की जरुरतों को भी पूरा करने में वह सक्षम है। शिल्पकला, चित्रकला और देशी उत्पादों से जरूरत के असंख्य सामान तैयार करने में जनजातीय समाज के कौशल का कोई सानी नहीं है। इनके घरों की दीवारों पर इतनी अद्भ्रुत चित्रकारी होती है कि उसकी मिसाल दुर्लभ है | मिट्टी, गेरू और पत्तों से बने रंण इतने सजीव तरीके से दीवारों पर उभरते हैं कि लगता है, सारा गाँव ही कलाकारों का गाँव है । इनकी कलाकृतियों में सिर्फ हुनर ही नहीं दिखता, बल्कि विभिन्न आकृतियों के माध्यम से समाज को संदेश भी देते हैं कि देखो, हमारा जीवन फूल, पत्ती, पशु-पक्षी और प्रकृति से कितनी गहराई से जुड़ा है।
झारखंड का जनजातीय समाज इतना हुनरमंद है कि अपनी जरुरत की चीज से लेकर अन्य समाज की जरुरतों को भी पूरा करने में वह सक्षम है। शिल्पकला, चित्रकला और देशी उत्पादों से जरूरत के असंख्य सामान तैयार करने में जनजातीय समाज के कौशल का कोई सानी नहीं है। इनके घरों की दीवारों पर इतनी अद्भ्रुत चित्रकारी होती है कि उसकी मिसाल दुर्लभ है | मिट्टी, गेरू और पत्तों से बने रंण इतने सजीव तरीके से दीवारों पर उभरते हैं कि लगता है, सारा गाँव ही कलाकारों का गाँव है । इनकी कलाकृतियों में सिर्फ हुनर ही नहीं दिखता, बल्कि विभिन्न आकृतियों के माध्यम से समाज को संदेश भी देते हैं कि देखो, हमारा जीवन फूल, पत्ती, पशु-पक्षी और प्रकृति से कितनी गहराई से जुड़ा है।
मनोज कुमार कपरदार—झारखंड प्रदेश के बोकारो जिले के बगदा गाँव में 25 फरवरी, 1965 को पिता श्री शिवनारायण कपरदार और माता श्रीमती मोती देवी के घर जन्मे मनोज कुमार कपरदार राँची में रहकर दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। विभिन्न विषयों पर सैकड़ों रचनाएँ क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित हुई हैं चित्रकला प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत । प्रभात खबर, वनांचल प्रहरी, घर, ऑथेंटिक सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य-चित्र भी प्रकाशित । एक पुस्तक ' झारखंड दर्पण ' प्रकाशित | साझा काव्य-संग्रह ' साहित्य उदय ', ' एकाक्ष ', 'साहित्य धरती', “मेरा गाँव', भारत @ 75 और मेरे पिता' में सहभागिता। विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में कविता शामिल ।
सम्मान : पुलिस पब्लिक हेल्पलाइन राष्ट्रीय सम्मान, झारखंड सेवा रत्न सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, काव्य शिरोमणि सम्मान और जनप्रिय लेखक 2022 सम्मान।
संप्रति : समाचार संपादक—'राँची एक्सप्रेस' (हिंदी दैनिक ) ।
संपादन : न्यूज स्केल (हिंदी साप्ताहिक), बुलंद झारखंड, पब्लिक विजन, सोशल मीडिया (हिंदी मासिक), एक संदेश (हिंदी दैनिक) ।
इ-मेल : manojkapardarjh@gmail.com, दूरभाष : 9771177585
सम्मान : पुलिस पब्लिक हेल्पलाइन राष्ट्रीय सम्मान, झारखंड सेवा रत्न सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, काव्य शिरोमणि सम्मान और जनप्रिय लेखक 2022 सम्मान।
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