Jara Yaad Unhen Bhi Kar Lo
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- ISBN13: 9789355213815
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
साधारणतया भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का कालखंड 1857 से 1947 तक माना जाता है, लेकिन विदेशी शासन का सबल प्रतिरोध इससे 332 वर्ष पहले सन् 1525 में ही प्रारंभ हो गया था, जब कर्नाटक के उलल्लाल नगर की रानी अब्बका चौटा, जो अग्निबाण चलानेवाली भारतवर्ष की अंतिम योद्धा थी, ने बढ़ते पुर्तगाली आधिपत्य को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
इस संग्रह में 1525 से 1947 अर्थात् लगभग सवा चार सौ वर्षों तक अनवरत प्रवहमान रहे विश्व के सर्वाधिक लंबे समय तक चले स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन किया गया है। सबसे कम आयु में माँ भारती के लिए बलिदान होनेवाले ओडिशा के 12 वर्षीय बाजीराव राठउत के अमर बलिदान को पढ़कर भला कौन किशोर और युवा रोमांचित नहीं होगा! दुर्गा भाभी तमाम बंदिशों को धता बताते हुए किस चतुराई से भगत सिंह को अंग्रेजों की नाक के नीचे से लाहौर से कलकत्ता निकाल ले गईं, यह आज भी मिशन शक्ति की प्रेरणा है। तात्या टोपे की बिटिया मैना देवी ने जनरल आउट्रम के सामने झुकने की जगह जिंदा आग में जलना स्वीकार किया और अजीजन बाई ने यह दिखाया कि समाज का हर तबका चाहे वह तवायफ ही क्यों न हो, देश की आजादी के लिए मर-मिटने को तैयार रहता है।
भारतवर्ष के ऐसे ही 75 वीरों और वीरांगनाओं का दाँतों तले उँगली दबाने सदृश अनछुआ वर्णन जो इन अनजाने क्रांतिवीरों के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा और सम्मान सृजित करेगा ।
इस संग्रह में 1525 से 1947 अर्थात् लगभग सवा चार सौ वर्षों तक अनवरत प्रवहमान रहे विश्व के सर्वाधिक लंबे समय तक चले स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन किया गया है। सबसे कम आयु में माँ भारती के लिए बलिदान होनेवाले ओडिशा के 12 वर्षीय बाजीराव राठउत के अमर बलिदान को पढ़कर भला कौन किशोर और युवा रोमांचित नहीं होगा! दुर्गा भाभी तमाम बंदिशों को धता बताते हुए किस चतुराई से भगत सिंह को अंग्रेजों की नाक के नीचे से लाहौर से कलकत्ता निकाल ले गईं, यह आज भी मिशन शक्ति की प्रेरणा है। तात्या टोपे की बिटिया मैना देवी ने जनरल आउट्रम के सामने झुकने की जगह जिंदा आग में जलना स्वीकार किया और अजीजन बाई ने यह दिखाया कि समाज का हर तबका चाहे वह तवायफ ही क्यों न हो, देश की आजादी के लिए मर-मिटने को तैयार रहता है।
भारतवर्ष के ऐसे ही 75 वीरों और वीरांगनाओं का दाँतों तले उँगली दबाने सदृश अनछुआ वर्णन जो इन अनजाने क्रांतिवीरों के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा और सम्मान सृजित करेगा ।
मूल रूप से पटना निवासी चिरंजीव सिन्हा वर्तमान में लखनऊ में अपर पुलिस उपायुक्त हैं। उनका मानना है कि नौका का नाविक मंजिल पर दृष्टि अवश्य टिकाए रहता है, परंतु पीछे छोड़ी लहरों का आभार व्यक्त करना वह कदापि नहीं भूलता, क्योंकि उन्हीं लहरों ने उसके आगे का पथ प्रशस्त किया है। इतिहास का सम्यक् दृष्टिबोध लेकर ही हम आगे आनेवाले कालखंड के लिए भावभूमि बना सकते हैं । यही उनके लेखन का दृष्टिबोध है। सरल और सामान्य भाषा-शैली का प्रयोग अंत तक पाठकों को उनकी रचनाओं से बाँधे रखता है। उनकी दो पुस्तकें 'अनुभूति' और 'जिंदगी की रेले रे' को भारत के आमजन ने खूब प्यार दिया है। ' अनुभूति' पुस्तक के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 'नरेश मेहता सर्जना पुरस्कार और “जिंदगी की रेले रे' के लिए उ.प्र. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ने 'डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार' दिया है। उनकी कहानियाँ अहा जिंदगी, सरिता, गृहलक्ष्मी, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला में अकसर प्रकाशित होती रहती हैं। इ-मेल : chiranjeevstf@gmail.com