Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav

Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav

by Jawahar Lal Kaul

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  • ISBN13: 9788173153174
  • Binding: Hardcover
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): General
वैश्‍वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्‍ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं?
अविश्‍वास, अनास्था और मूल्य- निरपेक्षता के इस संकटकाल में हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य हिंदी और हिंदी पत्रकारिता में है, जो देश की जनता ने की थीं? इन और ऐसे ही प्रश्‍नों का उत्तर खोजने के प्रयास में यह पुस्तक लिखी गई । लेकिन यह तलाश कहीं बाजार और विश्‍व-ग्राम की गलियों, कहीं प्रौद्योगिकी और अर्थ के रिश्तों, कहीं पत्रकारिता की दिशाहीनता और कहीं अंग्रेजी के फैलते साम्राज्य के बीच होते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ हमारे देश-काल और उसमें हमारी भूमिका के बारे में भी कुछ चौंकानेवाले प्रश्‍न खड़े हो गए हैं ।
दिनमान ' और ' जनसत्ता ' के पाठकों के लिए जवाहरलाल कौल अपरिचित नाम नहीं है । पैंतीस वर्ष पहले वे हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में आए । लेकिन उन्हें सुदूर और दुर्गम घाटियों छत्तीसगढ़ या छोटा नागपुर के जंगल, गुजरात के कटे-फटे तट, राजस्थान के रेतीले मैदान प्राय: दिल्ली से दूर खींच ले जाते । भुखमरी, भूस्थलन, भूकंप, बाढ़, दंगे, डकैती और न जाने कैसी-कैसी आपदाएँ- विपदाएँ बुलाती ही रहतीं । पुस्तकों और दस्तावेजों से कुछ तो सीखा ही होगा; लेकिन इस देश की धूल-मिट्टी, यहाँ के लोगों के दु:ख-दर्द, आशाओं- आशंकाओं से जो सीखा, उसीकी अनुभूति और प्रतीति उनके लेखन का मूल स्वर है । उनका शोधपरक लेखन भी आँकड़ों के समतल रेगिस्तान के बदले एक घाटी का सा आभास देता है ।

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