Geetika Poems Book By Suryakant Tripathi Nirala in Hindi
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- ISBN13: 9789390825974
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
गीतिका सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की एक प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है, जो उनके साहित्यिक योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुस्तक उनकी कविता की विशेष शैली और विचारधारा का जीवंत उदाहरण है। गीतिका में निराला ने जीवन, प्रेम, आस्था, संघर्ष और समाज की विभिन्न स्थितियों पर कविताएँ लिखी हैं, जो उनकी गहरी और संवेदनशील सोच को दर्शाती हैं।
गीतिका में निराला ने छोटे-छोटे गीतों के रूप में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। इन कविताओं में निराला की संवेदनशीलता, मानवता, और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन मिलता है। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरल लेकिन गहरे रूप में पेश करते हैं। गीतिका की कविताओं में एक विशेष तरह की लयबद्धता और संगीतात्मकता पाई जाती है, जो पाठक को एक नई दुनिया में प्रवेश कराती है।
गीतिका में निराला ने छोटे-छोटे गीतों के रूप में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। इन कविताओं में निराला की संवेदनशीलता, मानवता, और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन मिलता है। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरल लेकिन गहरे रूप में पेश करते हैं। गीतिका की कविताओं में एक विशेष तरह की लयबद्धता और संगीतात्मकता पाई जाती है, जो पाठक को एक नई दुनिया में प्रवेश कराती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961