Geetanjali Poems By Rabindra Nath Thakur
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- ISBN13: 9789348724762
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
गीतांजलि रवींद्रनाथ ठाकुर का एक अद्भुत काव्य संग्रह है जो आध्यात्मिकता, प्रेम, और प्रकृति की गहरी साक्षात्कार प्रदान करता है। इस काव्य संग्रह के माध्यम से रवींद्रनाथ ठाकुर ने मनुष्य और भगवान के बीच एक मधुर संबंध स्थापित किया और जीवन के सच्चे उद्देश्य की खोज को व्यक्त किया। "गीतांजलि" न केवल एक काव्य संग्रह है, बल्कि यह जीवन के गहरे अर्थ को जानने और समझने की एक साधना है।
गीतांजलि में कविताएँ हैं, जो रवींद्रनाथ ठाकुर के व्यक्तिगत अनुभव, उनके विश्वास, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करती हैं। इन कविताओं में भगवान के प्रति भक्ति, प्रेम, और जीवन के रहस्यों की खोज की अभिव्यक्ति की गई है। ठाकुर ने अपनी कविताओं के माध्यम से आत्मा, ईश्वर, और मानवता के बारे में गहरे विचार व्यक्त किए हैं।
गीतांजलि में कविताएँ हैं, जो रवींद्रनाथ ठाकुर के व्यक्तिगत अनुभव, उनके विश्वास, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करती हैं। इन कविताओं में भगवान के प्रति भक्ति, प्रेम, और जीवन के रहस्यों की खोज की अभिव्यक्ति की गई है। ठाकुर ने अपनी कविताओं के माध्यम से आत्मा, ईश्वर, और मानवता के बारे में गहरे विचार व्यक्त किए हैं।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा में उनकी अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की आयु में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की आयु में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।