Gathbandhan Ki Rajneeti Speeches By Shri Atal Bihari Vajpayee
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- ISBN13: 9789355622938
- Binding: Hardcover
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Political Science
भारतीय राजनीति गठबंधन के दौर में में न केवल प्रवेश कर चुकी है, गठबंधन की सरकारों का गठन अब भारतीय लोकतंत्र का वर्तमान और आगामी अतीत नजर आ रहा है। राष्ट्रीय दलों ही नहीं, क्षेत्रीय दलों की पैठ मतदाताओं में जितनी गहरी होती जाएगी, यह चलन बढ़ेगा। क्षेत्रीय मुद्दों पर ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपने क्षेत्रीय दलों पर मतदाता का भरोसा लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि मतदाता चाहता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उसका प्रतिनिधित्व उसके क्षेत्रीय दल करें। पिछले लगभग एक दशक से मतदाताओं ने गठबंधन की सरकारों के गठन का जनादेश दिया है।
अपने प्रधानमंत्रित्व काल में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं, उन्हें सहज शब्दों में कहा जा सकता है-जो कहा, वह कर दिखाया। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद भी उनकी कथनी और करनी एक ही बनी रही। अपनी बात को स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहना अटलजी जैसे निर्भय और सर्वमान्य व्यक्ति के लिए सहज और संभव रहा है।
मुद्दा चाहे पड़ोसियों से संबंध सुधारने की दिशा में चीन यात्रा का हो, लाहौर बस यात्रा हो या कारगिल से दुश्मन को खदेड़ना, आगरा वार्ता हो या फिर से खेल संबंधों की बहाली, परमाणु परीक्षण हो या डब्ल्यू.टी.ओ. पर दो टूक राय या अमेरिका की मध्यस्थता को ठुकराने का फैसला। अटलजी के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयों को छुआ। विदेशी मुद्रा भंडार, सूचना प्रौद्योगिकी, आउट सोर्सिंग, किसान बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग, नदियों का एकीकरण, सागर माला, दूरसंचार सुविधाओं का विकास, ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार जैसी दर्जनों योजनाएँ हैं, जो अटल जी के कार्यकाल में शुरू हुईं और जो आगामी अतीत में भारत को विकसित देशों की पंक्ति में स्थान दिलाने में सफल होंगी।
भारतीय राजनीति को अटल जी का योगदान है- समन्वय की राजनीति, सामंजस्य की राजनीति, मिल- जुलकर राष्ट्रहित में आगे बढ़ने की दिशा देना।
अपने प्रधानमंत्रित्व काल में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं, उन्हें सहज शब्दों में कहा जा सकता है-जो कहा, वह कर दिखाया। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद भी उनकी कथनी और करनी एक ही बनी रही। अपनी बात को स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहना अटलजी जैसे निर्भय और सर्वमान्य व्यक्ति के लिए सहज और संभव रहा है।
मुद्दा चाहे पड़ोसियों से संबंध सुधारने की दिशा में चीन यात्रा का हो, लाहौर बस यात्रा हो या कारगिल से दुश्मन को खदेड़ना, आगरा वार्ता हो या फिर से खेल संबंधों की बहाली, परमाणु परीक्षण हो या डब्ल्यू.टी.ओ. पर दो टूक राय या अमेरिका की मध्यस्थता को ठुकराने का फैसला। अटलजी के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयों को छुआ। विदेशी मुद्रा भंडार, सूचना प्रौद्योगिकी, आउट सोर्सिंग, किसान बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग, नदियों का एकीकरण, सागर माला, दूरसंचार सुविधाओं का विकास, ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार जैसी दर्जनों योजनाएँ हैं, जो अटल जी के कार्यकाल में शुरू हुईं और जो आगामी अतीत में भारत को विकसित देशों की पंक्ति में स्थान दिलाने में सफल होंगी।
भारतीय राजनीति को अटल जी का योगदान है- समन्वय की राजनीति, सामंजस्य की राजनीति, मिल- जुलकर राष्ट्रहित में आगे बढ़ने की दिशा देना।
डॉ. ना.मा. घटाटे
इन ग्रंथों के संपादक डॉ. नारायण माधव घटाटे ने विधि आयोग के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान की सेवा की; इससे पूर्व डॉ. घटाटे पिछले ३० वर्षों से उच्चतम न्यायालय में वकालत करते रहे।
डॉ. घटाटे ने स्नातक की उपाधि नागपुर विश्वविद्यालय से एल-एल.बी. दिल्ली विश्वविद्यालय से, स्नातकोत्तर और पी- एच.डी. की उपाधि विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग, अमेरिकन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन से प्राप्त कीं। अमेरिका में अध्ययन के दौरान विश्वविद्यालय के विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग में सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विविध विषयों के अध्यापक भी रहे।
श्री घटाटे ने स्नातकोत्तर शोधप्रबंध 'चीन-बर्मा सीमा विवाद' पर और पी-एच.डी. शोधप्रबंध 'भारतीय विदेश नीति में निरस्त्रीकरण' विषय पर लिखा। उन्होंने संविधान, अंतरराष्ट्रीय संबंध और समसामयिक विषयों पर अनेक शोध- लेख लिखे ।
उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे डॉ. घटाटे ने १९७५ के आपातकाल के दौरान नजरबंद सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से पैरवी की। डॉ. घटाटे १९७३ से १९७७ तक भारतीय जनसंघ और १९८८ से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे।
डॉ. घटाटे ने 'मेरी संसदीय यात्रा' से पूर्व अटलजी के संसदीय भाषणों पर केंद्रित 'संसद में तीन दशक' और 'फोर डिकेड्स इन पार्लियामेंट' पुस्तकों का भी संपादन किया। इनके अतिरिक्त 'भारत-सोवियत संधि: प्रतिक्रियाएँ और विचार', 'बँगलादेश : संघर्ष और परिणाम' और 'आपातकाल हटाओ'
शीर्षक पुस्तकों का सफल लेखन-संपादन किया। स्मृतिशेषः - २४ जनवरी, २०२१।
इन ग्रंथों के संपादक डॉ. नारायण माधव घटाटे ने विधि आयोग के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान की सेवा की; इससे पूर्व डॉ. घटाटे पिछले ३० वर्षों से उच्चतम न्यायालय में वकालत करते रहे।
डॉ. घटाटे ने स्नातक की उपाधि नागपुर विश्वविद्यालय से एल-एल.बी. दिल्ली विश्वविद्यालय से, स्नातकोत्तर और पी- एच.डी. की उपाधि विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग, अमेरिकन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन से प्राप्त कीं। अमेरिका में अध्ययन के दौरान विश्वविद्यालय के विदेशी क्षेत्र अध्ययन विभाग में सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विविध विषयों के अध्यापक भी रहे।
श्री घटाटे ने स्नातकोत्तर शोधप्रबंध 'चीन-बर्मा सीमा विवाद' पर और पी-एच.डी. शोधप्रबंध 'भारतीय विदेश नीति में निरस्त्रीकरण' विषय पर लिखा। उन्होंने संविधान, अंतरराष्ट्रीय संबंध और समसामयिक विषयों पर अनेक शोध- लेख लिखे ।
उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे डॉ. घटाटे ने १९७५ के आपातकाल के दौरान नजरबंद सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से पैरवी की। डॉ. घटाटे १९७३ से १९७७ तक भारतीय जनसंघ और १९८८ से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे।
डॉ. घटाटे ने 'मेरी संसदीय यात्रा' से पूर्व अटलजी के संसदीय भाषणों पर केंद्रित 'संसद में तीन दशक' और 'फोर डिकेड्स इन पार्लियामेंट' पुस्तकों का भी संपादन किया। इनके अतिरिक्त 'भारत-सोवियत संधि: प्रतिक्रियाएँ और विचार', 'बँगलादेश : संघर्ष और परिणाम' और 'आपातकाल हटाओ'
शीर्षक पुस्तकों का सफल लेखन-संपादन किया। स्मृतिशेषः - २४ जनवरी, २०२१।