Dhratrashtra Times
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- ISBN13: 9788185828947
- Binding: Hardcover
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
सुबह-सुबह ही कनपटी पर जैसे दुनाली तान दी गई । फोन से आती आवाज ने कहा, ' हिंदी की यह प्रतिष्ठित पत्रिका जानना चाहती है कि क्यों लिखती हैं आप व्यंग्य?'
कटु सत्य यही है कि मेरे व्यंग्य लिखने का पहला कारण एक, पागल कुत्ता है, जो जब-तब मुझे काट खाता है और मैं लिखने बैठ जाती हूँ । ताज्जुब की बात तो यह है कि ज्यादातर पाठकों को मेरे वे ही व्यंग्य धारदार और पैने लगे हैं जो मैंने इस कुत्ते के काट खाने के बाद लिखे हैं । मैंने उस कुत्ते के दाँत तक पास से नहीं देखे; पर व्यंग्य रचना पैनी हो जाती है ।
आपसे यह भी बता दूँ कियह कुत्ता न घर का है, न घाट का । हिंदी लेखक का कुत्ता है न! जब लेखक ही ताउम्र किसी घाट नहीं लग पाता हो तो उसके कुत्ते की क्या बिसात! अब आपसे छुपाना क्या! आप खुद ही समझ गए होंगे कि यह कुत्ता भी मेरा अपना नहीं बल्कि एक धोबी से कॉण्ट्रैक्ट पर लिया हुआ है । दरअसल मुझे अपनी लेखकीय कुंठा ढोने के लिए यही सबसे उपयुक्त लगा ।
एक समय की बात है, हिंदुस्तान में एक भाषा हुआ करती थी । उसका नाम था हिंदी । चूँकि यह भाषा समूचे हिंदुस्तान की गरिमा की प्रतीक थी, इसलिए इसे वातानुकूलित ऑफिसों की एयरटाइट फाइलों में बंद करके रखा जाता था । सरकार की तरफ से इसकी सुरक्षा के कड़े निर्देश थे । जेड क्लास सुरक्षा चक्रों के बीच, संसद् की बैठकों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि ' माननीय सभासदो! माननीय अध्यक्षजी!' के अतिरिक्त सबकुछ अंग्रेजी में ही हो । इसलिए कुछेक सिरफिरों थे छोड़कर सारे प्रस्ताव अंग्रेजी में ही प्रस्तावित और खारिज किए जाते थे । सारी-की-सारी योजनाएँ और बड़े-से-बड़े स्कैंडल अंग्रेजी में ही किए जाते थे, जैसे बोफोर्स । सिर्फ कुछ विशेष प्रकार के स्कैंडल हिंदी में होते थे, जैसे प्रतिभूति घोटाला ।
-इसी पुस्तक से
कटु सत्य यही है कि मेरे व्यंग्य लिखने का पहला कारण एक, पागल कुत्ता है, जो जब-तब मुझे काट खाता है और मैं लिखने बैठ जाती हूँ । ताज्जुब की बात तो यह है कि ज्यादातर पाठकों को मेरे वे ही व्यंग्य धारदार और पैने लगे हैं जो मैंने इस कुत्ते के काट खाने के बाद लिखे हैं । मैंने उस कुत्ते के दाँत तक पास से नहीं देखे; पर व्यंग्य रचना पैनी हो जाती है ।
आपसे यह भी बता दूँ कियह कुत्ता न घर का है, न घाट का । हिंदी लेखक का कुत्ता है न! जब लेखक ही ताउम्र किसी घाट नहीं लग पाता हो तो उसके कुत्ते की क्या बिसात! अब आपसे छुपाना क्या! आप खुद ही समझ गए होंगे कि यह कुत्ता भी मेरा अपना नहीं बल्कि एक धोबी से कॉण्ट्रैक्ट पर लिया हुआ है । दरअसल मुझे अपनी लेखकीय कुंठा ढोने के लिए यही सबसे उपयुक्त लगा ।
एक समय की बात है, हिंदुस्तान में एक भाषा हुआ करती थी । उसका नाम था हिंदी । चूँकि यह भाषा समूचे हिंदुस्तान की गरिमा की प्रतीक थी, इसलिए इसे वातानुकूलित ऑफिसों की एयरटाइट फाइलों में बंद करके रखा जाता था । सरकार की तरफ से इसकी सुरक्षा के कड़े निर्देश थे । जेड क्लास सुरक्षा चक्रों के बीच, संसद् की बैठकों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि ' माननीय सभासदो! माननीय अध्यक्षजी!' के अतिरिक्त सबकुछ अंग्रेजी में ही हो । इसलिए कुछेक सिरफिरों थे छोड़कर सारे प्रस्ताव अंग्रेजी में ही प्रस्तावित और खारिज किए जाते थे । सारी-की-सारी योजनाएँ और बड़े-से-बड़े स्कैंडल अंग्रेजी में ही किए जाते थे, जैसे बोफोर्स । सिर्फ कुछ विशेष प्रकार के स्कैंडल हिंदी में होते थे, जैसे प्रतिभूति घोटाला ।
-इसी पुस्तक से
सूर्यबाला
जन्म : 25 अक्टूबर, 1944 को ( वाराणसी) । शिक्षा : एम .ए., पी-एच.डी. ( काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ।
प्रकाशन : ' मेरे संधि पत्र ', ' सुबह के इंतजार तक ', ' यामिनी-कथा ', ' दीक्षांत ', ' अग्निपंखी ' ( उपन्यास); ' एक इंद्र धनुष ', ' दिशाहीन ', ' थाली भर चाँद ', ' मुँडेर पर ', ' गृह प्रवेश ', ' कात्यायनी संवाद ', ' साँझवाती ', ' पाँच लंबी कहानियाँ ' ( कहानी संग्रह); ' अजगर करे न चाकरी ', ' धृतराष्ट्र टाइम्स ' ( व्यंग्य संग्रह) ।
पिछले ढाई दशकों से हिंदी कहानी, उपन्यास और हास्य-व्यंग्य में एक सुपरिचित, प्रतिष्ठित नाम । अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू मराठी, बँगला, पंजाबी, तेलुगु कन्नड आदि भाषाओं में अनुवाद ।
आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं धारावाहिकों में अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा व्यंग्य रचनाओं का रूपांतर प्रस्तुत ।
दूरदर्शन धारावाहिकों में ' पलाश के फूल ', ' न, किन्नी न ', ' सौदागर दुआओं के ', ' एक इंद्र धनुष जुबेदा के नाम ', ' सबको पता है ', ' रेस ' तथा ' निर्वासित ' आदि प्रमुख हैं । सम्मान-पुरस्कार : साहित्य में योगदान के लिए ' प्रियदर्शिनी पुरस्कार ', ' घनश्याम दास सराफ पुरस्कार ' तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मुंबई विद्यापीठ, आरोही, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सतपुड़ा संस्कृति परिषद् आदि संस्थाओं से सम्मानित ।
जन्म : 25 अक्टूबर, 1944 को ( वाराणसी) । शिक्षा : एम .ए., पी-एच.डी. ( काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ।
प्रकाशन : ' मेरे संधि पत्र ', ' सुबह के इंतजार तक ', ' यामिनी-कथा ', ' दीक्षांत ', ' अग्निपंखी ' ( उपन्यास); ' एक इंद्र धनुष ', ' दिशाहीन ', ' थाली भर चाँद ', ' मुँडेर पर ', ' गृह प्रवेश ', ' कात्यायनी संवाद ', ' साँझवाती ', ' पाँच लंबी कहानियाँ ' ( कहानी संग्रह); ' अजगर करे न चाकरी ', ' धृतराष्ट्र टाइम्स ' ( व्यंग्य संग्रह) ।
पिछले ढाई दशकों से हिंदी कहानी, उपन्यास और हास्य-व्यंग्य में एक सुपरिचित, प्रतिष्ठित नाम । अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू मराठी, बँगला, पंजाबी, तेलुगु कन्नड आदि भाषाओं में अनुवाद ।
आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं धारावाहिकों में अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा व्यंग्य रचनाओं का रूपांतर प्रस्तुत ।
दूरदर्शन धारावाहिकों में ' पलाश के फूल ', ' न, किन्नी न ', ' सौदागर दुआओं के ', ' एक इंद्र धनुष जुबेदा के नाम ', ' सबको पता है ', ' रेस ' तथा ' निर्वासित ' आदि प्रमुख हैं । सम्मान-पुरस्कार : साहित्य में योगदान के लिए ' प्रियदर्शिनी पुरस्कार ', ' घनश्याम दास सराफ पुरस्कार ' तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मुंबई विद्यापीठ, आरोही, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सतपुड़ा संस्कृति परिषद् आदि संस्थाओं से सम्मानित ।