Desh Seva Ke Akhade Mein
₹400.00
₹328.00
18% OFF
Ships in 1 - 2 Days
Secure Payment Methods at Checkout
- ISBN13: 9789386871176
- Binding: Hardcover
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): General
यह खबर चारों तरफ आग की तरह फैल गई कि मैं देश-सेवा के लिए उतरनेवाला हूँ। जिसने सुना, भागा आया और मेरे निर्णय की दाद दी। बधाई-संदेशों का ताँता लग गया—‘सुना, आप देश-सेवा के लिए उतर रहे हैं। ईश्वर देश का भला करें!’
प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे कि बाइ द वे, शुरुआत कहाँ से कर रहे हैं? कौन सा एरिया चुन रहे हैं? हमारे अंचल से करिए न! बहुत स्कोप है। हेलीपैड बनकर विकसित होने लायक इफरात जमीन पड़ी है। आबो-हवा भी स्वास्थ्यप्रद है। ईश्वर की दया से गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा आदि किसी बात की कमी नहीं। लोग भी सीधे-सादे, नादान किस्म के हैं—तो बहकने की कोई गुंजाइश नहीं। वर्षों सुख-शांति, अमन-चैन से गुजार सकेंगे आप ‘माई-बाप’, इन देश के लालों के साथ। ये हमेशा रोटी के लाले पडे़ रहने पर भी कभी शिकवे-शिकायत नहीं करते। हर हाल में मुँह सिलकर रहने की जबरदस्त टे्रनिंग मिली है इन्हें।
मैंने सोचा, जगहें तो सारी एक सी हैं; ऐसे स्कोप कहाँ नहीं हैं! लेकिन जब कहा जा रहा है, ऑफर मिला है तो उन्हीं के एरिया से शुरुआत हो जाए। मेरा निश्चय सुनते ही प्रेसवाले दौडे़ आए और आग की तरह फैलती इस खबर में घी डाल गए।
प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे कि बाइ द वे, शुरुआत कहाँ से कर रहे हैं? कौन सा एरिया चुन रहे हैं? हमारे अंचल से करिए न! बहुत स्कोप है। हेलीपैड बनकर विकसित होने लायक इफरात जमीन पड़ी है। आबो-हवा भी स्वास्थ्यप्रद है। ईश्वर की दया से गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा आदि किसी बात की कमी नहीं। लोग भी सीधे-सादे, नादान किस्म के हैं—तो बहकने की कोई गुंजाइश नहीं। वर्षों सुख-शांति, अमन-चैन से गुजार सकेंगे आप ‘माई-बाप’, इन देश के लालों के साथ। ये हमेशा रोटी के लाले पडे़ रहने पर भी कभी शिकवे-शिकायत नहीं करते। हर हाल में मुँह सिलकर रहने की जबरदस्त टे्रनिंग मिली है इन्हें।
मैंने सोचा, जगहें तो सारी एक सी हैं; ऐसे स्कोप कहाँ नहीं हैं! लेकिन जब कहा जा रहा है, ऑफर मिला है तो उन्हीं के एरिया से शुरुआत हो जाए। मेरा निश्चय सुनते ही प्रेसवाले दौडे़ आए और आग की तरह फैलती इस खबर में घी डाल गए।
रचना-संसार : पाँच उपन्यास, पंद्रह कथा-संग्रह, चार व्यंग्य-संग्रह तथा स्मृति-कथा ‘अलविदा अन्ना’ के साथ बच्चों पर लिखा बाल हास्य उपन्यास ‘झगड़ा निपटारक दफ्तर’ भी अत्यंत प्रशंसित रहा। उपन्यास ‘मेरे संधिपत्र’ धर्मयुग में धारावाहिक प्रकाशित तथा ‘यामिनी- कथा’, ‘दीक्षांत’ जैसे उपन्यास स्नातकोत्तर एवं स्नातकीय पाठ्यक्रम में शामिल। कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयॉर्क), वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय (त्रिनिनाद) एवं नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी तथा व्यंग्य रचनाओं का पाठ। न्यूयॉर्क के शब्द-स्टार टी.वी. चैनल पर कहानी एवं व्यंग्य पाठ।
सम्मान-पुरस्कार : ‘सजायाफ्ता’ कहानी पर बनी टेलीफिल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेलीफिल्म पुरस्कार। प्रियदर्शनी पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ पुरस्कार, व्यंग्यश्री पुरस्कार, रत्नीदेवी गोइनका वाग्देवी पुरस्कार, राजस्थान लेखिका मंच का वाग्मणि सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान, भारती गौरव पुरस्कार, महाराष्ट्र साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं अन्य पुरस्कारों से सम्मानित।
संपर्क
9323168670, 9930968670,
022-25504927
सम्मान-पुरस्कार : ‘सजायाफ्ता’ कहानी पर बनी टेलीफिल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेलीफिल्म पुरस्कार। प्रियदर्शनी पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ पुरस्कार, व्यंग्यश्री पुरस्कार, रत्नीदेवी गोइनका वाग्देवी पुरस्कार, राजस्थान लेखिका मंच का वाग्मणि सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान, भारती गौरव पुरस्कार, महाराष्ट्र साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं अन्य पुरस्कारों से सम्मानित।
संपर्क
9323168670, 9930968670,
022-25504927