Champaran Mein Mahatma Gandhi
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- ISBN13: 9789351868439
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
‘चंपारन में महात्मा गांधी’ को पढ़ने से पाठकों को विदित हो जाएगा कि सत्याग्रह और असहयोग के संबंध में जो कुछ महात्मा गांधी ने सन् १९२० से १९२२ ई. तक किया, उसका आभास चंपारन में १९१७ में ही मिल चुका था। दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गांधी ने महत्त्व का जो पहला काम किया था, वह चंपारन में ही किया था। उस समय भारतवर्ष में ‘होमरूल’ का बड़ा शोर था। जब हम महात्माजी से कहते थे कि वे उस आंदोलन में चंपारन को भी लगा दें, तब वे यह कहा करते थे कि जो काम चंपारन में हो रहा है, वही ‘होमरूल’ स्थापित कर सकेगा।
जिस प्रकार भारतवर्ष को अन्याय और दुराचार के भार से दबता हुआ देखकर महात्माजी ने असहयोग-आंदोलन आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन की प्रजा को भी अन्याय और अत्याचार के बोझ से दबती हुई पाकर और उसका उद्धार करना अपना कर्तव्य समझकर उन्होंने वहाँ भी पदार्पण किया था। जिस प्रकार भारतवर्ष ने सभाओं और समाचार-पत्रों और कौंसिल में प्रस्तावों तथा प्रश्नों के द्वारा आंदोलन कर कुछ सफलता प्राप्त न करने पर ही सत्याग्रह और असहयोग आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन में भी यह सबकुछ करके थक जाने पर ही वहाँ की जनता ने महात्मा गांधी को निमंत्रित किया था। जिस प्रकार वर्तमान आंदोलन में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना अनन्य सिद्धांत रखकर देश को उसे स्वीकार करने की चंपारन की शिक्षा दी है, उसी प्रकार उस समय भी दरिद्र, अशिक्षित और भोली-भाली प्रजा को व्याख्यान के द्वारा नहीं, बल्कि अपने कार्यों के द्वारा शिक्षा दी थी।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कलम से प्रसूत वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण कृति।
जिस प्रकार भारतवर्ष को अन्याय और दुराचार के भार से दबता हुआ देखकर महात्माजी ने असहयोग-आंदोलन आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन की प्रजा को भी अन्याय और अत्याचार के बोझ से दबती हुई पाकर और उसका उद्धार करना अपना कर्तव्य समझकर उन्होंने वहाँ भी पदार्पण किया था। जिस प्रकार भारतवर्ष ने सभाओं और समाचार-पत्रों और कौंसिल में प्रस्तावों तथा प्रश्नों के द्वारा आंदोलन कर कुछ सफलता प्राप्त न करने पर ही सत्याग्रह और असहयोग आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन में भी यह सबकुछ करके थक जाने पर ही वहाँ की जनता ने महात्मा गांधी को निमंत्रित किया था। जिस प्रकार वर्तमान आंदोलन में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना अनन्य सिद्धांत रखकर देश को उसे स्वीकार करने की चंपारन की शिक्षा दी है, उसी प्रकार उस समय भी दरिद्र, अशिक्षित और भोली-भाली प्रजा को व्याख्यान के द्वारा नहीं, बल्कि अपने कार्यों के द्वारा शिक्षा दी थी।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कलम से प्रसूत वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण कृति।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
गांधी युग के अग्रणी नेता देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का जन्म ३ दिसंबर, १८८४ को बिहार के सारण जिला के ग्राम जीरादेई में हुआ। आरंभिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा तथा उच्च शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में। अत्यंत मेधावी एवं कुशाग्र-बुद्धि छात्र, एंटें्रस से बी.ए. तक की परीक्षाओं में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त, एम.एल. की परीक्षा में पुनः प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त। १९११ में वकालत प्रारंभ, पहले कलकत्ता और फिर पटना में प्रैक्टिस।
छात्र-जीवन से ही सार्वजनिक एवं लोक-हित के कार्यों में गहरी दिलचस्पी। बिहारी छात्र सम्मेलन के संस्थापक। १९१७-१८ में गांधीजी के नेतृत्व में गोरों द्वारा सताए चंपारण के किसानों के लिए कार्य। १९२० में वकालत त्याग असहयोग आंदोलन में शामिल। संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित, कांग्रेस संगठन तथा स्वतंत्रता संग्राम के अग्रवर्ती नेता। तीन बार कांगे्रस अध्यक्ष, अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री, संविधान सभा अध्यक्ष के रूप में संविधान-निर्माण में अहम भूमिका। १९५० से १९६२ तक भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति। प्रखर चिंतक, विचारक तथा उच्च कोटि के लेखक एवं वक्ता। देश-विदेश में अनेक उपाधियों से सम्मानित, १३ मई, १९६२ को ‘भारत-रत्न’ से अलंकृत।
सेवा-निवृत्ति के बाद पूर्व कर्मभूमि सदाकत आश्रम, पटना में निवास। जीवन के अंतिम समय तक देश एवं लोक-सेवा के पावन व्रत में तल्लीन।
स्मृतिशेष : २८ फरवरी, १९६३।
गांधी युग के अग्रणी नेता देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का जन्म ३ दिसंबर, १८८४ को बिहार के सारण जिला के ग्राम जीरादेई में हुआ। आरंभिक शिक्षा जिला स्कूल छपरा तथा उच्च शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में। अत्यंत मेधावी एवं कुशाग्र-बुद्धि छात्र, एंटें्रस से बी.ए. तक की परीक्षाओं में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त, एम.एल. की परीक्षा में पुनः प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त। १९११ में वकालत प्रारंभ, पहले कलकत्ता और फिर पटना में प्रैक्टिस।
छात्र-जीवन से ही सार्वजनिक एवं लोक-हित के कार्यों में गहरी दिलचस्पी। बिहारी छात्र सम्मेलन के संस्थापक। १९१७-१८ में गांधीजी के नेतृत्व में गोरों द्वारा सताए चंपारण के किसानों के लिए कार्य। १९२० में वकालत त्याग असहयोग आंदोलन में शामिल। संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित, कांग्रेस संगठन तथा स्वतंत्रता संग्राम के अग्रवर्ती नेता। तीन बार कांगे्रस अध्यक्ष, अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री, संविधान सभा अध्यक्ष के रूप में संविधान-निर्माण में अहम भूमिका। १९५० से १९६२ तक भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति। प्रखर चिंतक, विचारक तथा उच्च कोटि के लेखक एवं वक्ता। देश-विदेश में अनेक उपाधियों से सम्मानित, १३ मई, १९६२ को ‘भारत-रत्न’ से अलंकृत।
सेवा-निवृत्ति के बाद पूर्व कर्मभूमि सदाकत आश्रम, पटना में निवास। जीवन के अंतिम समय तक देश एवं लोक-सेवा के पावन व्रत में तल्लीन।
स्मृतिशेष : २८ फरवरी, १९६३।