Billesur Bakariha Novel Book By Suryakant Tripathi Nirala in Hindi

Billesur Bakariha Novel Book By Suryakant Tripathi Nirala in Hindi

by Suryakant Tripathi ‘Nirala’

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  • ISBN13: 9789390825417
  • Binding: Paperback
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Novel
बिलेसुर बकरीहा सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो उनके साहित्यिक योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उपन्यास समाज के विभिन्न पहलुओं को उद्घाटित करता है और उन जटिलताओं को दिखाता है जो उस समय के समाज में व्याप्त थीं।

बिलेसुर बकरीहा की कहानी एक छोटे से गाँव की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ मुख्य पात्र बिलेसुर नामक एक चरवाहा है। यह उपन्यास उसकी जीवन यात्रा, संघर्ष और उसके साथ होने वाली घटनाओं के माध्यम से समाज के सामाजिक और मानसिक दबावों को चित्रित करता है। बिलेसुर एक सामान्य आदमी है, जिसे अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है। उसका जीवन गरीबी, जातिवाद और अन्य सामाजिक असमानताओं से जूझते हुए चलता है।

इस उपन्यास में निराला ने उस समय की ग्रामीण स्थिति, कामकाजी वर्ग की मुश्किलें, और आम आदमी की संवेदनाओं को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। उपन्यास की कथा न केवल बिलेसुर के व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को भी उजागर करती है। यह नायक का केवल व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह समग्र समाज के विरोध और संघर्ष की भी कहानी है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।

उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।

स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961

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