Bharat Mein Saman Nagrik Sanhita: (Uniform Civil Code)
₹400.00
₹340.00
15% OFF
Ships in 1 - 2 Days
Secure Payment Methods at Checkout
- ISBN13: 9789355626943
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Political Science
समान नागरिक संहिता राष्ट्र की पहचान है।
भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्त्व के रूप में व्यक्त की गई है।
भारत के संविधान के सन् 1950 में लागू होने के पश्चात् इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, जबकि उच्चतम न्यायालय बार-बार सरकार को सजग करता रहा। सन् 1995 में उच्चतम न्यायालय ने सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में तो समान नागरिक संहिता पर त्वरित कार्यवाही करने की सलाह दी।
प्रायः भारत की अस्सी प्रतिशत हिन्दू आबादी के स्वीय विधि अधिनियम बन चुके हैं। गोवा राज्य में समान नागरिक संहिता लागू है और संप्रति उत्तराखंड राज्य ने भी सन् 2024 में समान नागरिक संहिता अपने क्षेत्र में साहस के साथ लागू कर दी है।
इस पुस्तक में समान नागरिक संहिता को लागू करने के पीछे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत किया गया है विशेषतः भारतीय संविधान परिषद् में तत्संबंधी चर्चा जो आज भी प्रासंगिक है।
विश्व के अनेक इस्लामिक देशों में भी बहु-विवाह प्रथा पर रोक लग गई है पर भारत में बहु-विवाह तथा अन्य विषय अभी भी विवादित बने हुए हैं। उच्चतम न्यायालय के समान नागरिक संहिता से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयों से तथ्यों को निकालकर सभी आयामों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक के अंत में व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ भी दी गई हैं ताकि विषय एवं पुस्तक सहज ग्रहण हो।
आशा है कि इस पुस्तक का, भारत में समान नागरिक संहिता जैसे ज्वलंत विषय पर सभी वर्गों, धर्मों, जातियों, विधि-विशेषज्ञों, विधायिका तथा पाठकों द्वारा समान रूप से स्वागत किया जाएगा।
भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्त्व के रूप में व्यक्त की गई है।
भारत के संविधान के सन् 1950 में लागू होने के पश्चात् इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, जबकि उच्चतम न्यायालय बार-बार सरकार को सजग करता रहा। सन् 1995 में उच्चतम न्यायालय ने सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में तो समान नागरिक संहिता पर त्वरित कार्यवाही करने की सलाह दी।
प्रायः भारत की अस्सी प्रतिशत हिन्दू आबादी के स्वीय विधि अधिनियम बन चुके हैं। गोवा राज्य में समान नागरिक संहिता लागू है और संप्रति उत्तराखंड राज्य ने भी सन् 2024 में समान नागरिक संहिता अपने क्षेत्र में साहस के साथ लागू कर दी है।
इस पुस्तक में समान नागरिक संहिता को लागू करने के पीछे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत किया गया है विशेषतः भारतीय संविधान परिषद् में तत्संबंधी चर्चा जो आज भी प्रासंगिक है।
विश्व के अनेक इस्लामिक देशों में भी बहु-विवाह प्रथा पर रोक लग गई है पर भारत में बहु-विवाह तथा अन्य विषय अभी भी विवादित बने हुए हैं। उच्चतम न्यायालय के समान नागरिक संहिता से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयों से तथ्यों को निकालकर सभी आयामों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक के अंत में व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ भी दी गई हैं ताकि विषय एवं पुस्तक सहज ग्रहण हो।
आशा है कि इस पुस्तक का, भारत में समान नागरिक संहिता जैसे ज्वलंत विषय पर सभी वर्गों, धर्मों, जातियों, विधि-विशेषज्ञों, विधायिका तथा पाठकों द्वारा समान रूप से स्वागत किया जाएगा।
डॉ. पी. के. अग्रवाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन् 1973 के एलएल.बी. टॉपर एवं गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से एलएल.एम. तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में डि.फिल डिग्रियाँ प्राप्त कीं। डॉ. अग्रवाल सन् 1997 से 2002 तक विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार में संयुक्त सचिव रहे।
हिंदी तथा अंग्रेजी के प्रतिष्ठित लेखक डॉ. अग्रवाल की अब तक 80 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंग्रेजी में कॉन्सटीट्यूशन ऑफ इंडिया (बेयर एक्ट), कमेंटरी ऑन दि कॉन्सटीट्यूशन ऑफ इंडिया तथा 85 लैंडमार्क जजमेंट्स ऑफ सुप्रीम कोर्ट तथा हिंदी में भारत का संविधान एवं सुप्रीम कोर्ट के 85 ऐतिहासिक जजमेंट्स उनकी विधि क्षेत्र में प्रकाशित महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा भारत का संविधान तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा कारागार में कैदियों का जीवन उनकी दो पुरस्कृत कृतियाँ हैं। वे हिंदी साहित्य में योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण एवं हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा साहित्य महोपाध्याय उपाधि से सम्मानित हैं।
डॉ. अग्रवाल भारत की अग्रणी विधि फर्म खेतान एंड कंपनी में साझीदार तथा दिल्ली लॉ फर्म वैश ग्लोबल में नौ वर्ष तक प्रबंध साझीदार रह चुके हैं।
सम्प्रति डॉ. अग्रवाल पूर्णतः लेखन में संलग्न हैं।
हिंदी तथा अंग्रेजी के प्रतिष्ठित लेखक डॉ. अग्रवाल की अब तक 80 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंग्रेजी में कॉन्सटीट्यूशन ऑफ इंडिया (बेयर एक्ट), कमेंटरी ऑन दि कॉन्सटीट्यूशन ऑफ इंडिया तथा 85 लैंडमार्क जजमेंट्स ऑफ सुप्रीम कोर्ट तथा हिंदी में भारत का संविधान एवं सुप्रीम कोर्ट के 85 ऐतिहासिक जजमेंट्स उनकी विधि क्षेत्र में प्रकाशित महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा भारत का संविधान तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा कारागार में कैदियों का जीवन उनकी दो पुरस्कृत कृतियाँ हैं। वे हिंदी साहित्य में योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण एवं हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा साहित्य महोपाध्याय उपाधि से सम्मानित हैं।
डॉ. अग्रवाल भारत की अग्रणी विधि फर्म खेतान एंड कंपनी में साझीदार तथा दिल्ली लॉ फर्म वैश ग्लोबल में नौ वर्ष तक प्रबंध साझीदार रह चुके हैं।
सम्प्रति डॉ. अग्रवाल पूर्णतः लेखन में संलग्न हैं।