Bharat Ke Vitta Mantri | Hindi Translation of India’s Finance Ministers From Independence To Emergency (1947-1977)
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- ISBN13: 9788199335639
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Political Science
स्वतंत्र भारत में अब अब तक पच्चीस वित्त मंत्री हुए हैं, जिनमें से प्रत्येक ने कम-से-कम एक पूर्ण बजट पेश किया है। हालाँकि उनमें से केवल कुछ ही राजकोष, यानी भारत के वित्त मंत्रालय के मुख्यालय, नॉर्थ ब्लॉक पर अपनी छाप छोड़ पाए।
'भारत के वित्त मंत्री' स्वतंत्रता से आपातकाल तक (1947-1977) भारत के उन अविस्मरणीय वित्त मंत्रियों की कहानी है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद के पहले तीस वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को आकार दिया। यह पुस्तक उन बड़े बदलावों पर प्रकाश डालती है, जो इन वित्त मंत्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के साथ-साथ सरकारी नीतियों में भी किए और राष्ट्रीय मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी। यह पुस्तक इन वित्त मंत्रियों के न केवल भारत की आर्थिक व्यवस्था पर, बल्कि उसकी राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ने वाले प्रभाव तथा उनके निर्णयों पर उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के प्रभाव को मापने का प्रयास करती है।
रोचक किस्सों से परिपूर्ण यह पुस्तक भारत की अर्थव्यवस्था के संचालन में वित्त मंत्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका का पहला गहन अन्वेषण है।
'भारत के वित्त मंत्री' स्वतंत्रता से आपातकाल तक (1947-1977) भारत के उन अविस्मरणीय वित्त मंत्रियों की कहानी है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद के पहले तीस वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को आकार दिया। यह पुस्तक उन बड़े बदलावों पर प्रकाश डालती है, जो इन वित्त मंत्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के साथ-साथ सरकारी नीतियों में भी किए और राष्ट्रीय मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी। यह पुस्तक इन वित्त मंत्रियों के न केवल भारत की आर्थिक व्यवस्था पर, बल्कि उसकी राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ने वाले प्रभाव तथा उनके निर्णयों पर उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के प्रभाव को मापने का प्रयास करती है।
रोचक किस्सों से परिपूर्ण यह पुस्तक भारत की अर्थव्यवस्था के संचालन में वित्त मंत्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका का पहला गहन अन्वेषण है।
ए.के. भट्टाचार्य
1990 के दशक के आरंभ में, जो प्रमुख आर्थिक सुधारों का दशक था, 'इकोनॉमिक टाइम्स' के ब्यूरो प्रमुख के रूप में बिजनेस रिपोर्टिंग के लिए मानक स्थापित किए।
पत्रकारिता में अपने चार दशक के दौरान उन्होंने कई रचनात्मक और अन्य बदलावों को करीब से देखा। यह यात्रा तब शुरू हुई, जब उन्होंने एक साल अध्यापन के बाद अपना कॅरियर बदल लिया। इसके बाद एकेबी 'पायोनियर' और 'बिजनेस स्टैंडर्ड' के संपादक बने। अब वे 'बिजनेस स्टैंडर्ड' के संपादकीय निदेशक हैं और इसमें लंबे समय से एक कॉलम लिख रहे हैं। वे 'द राइज ऑफ गोलियथ' के लेखक भी हैं। यह उनकी दूसरी पुस्तक है।
1990 के दशक के आरंभ में, जो प्रमुख आर्थिक सुधारों का दशक था, 'इकोनॉमिक टाइम्स' के ब्यूरो प्रमुख के रूप में बिजनेस रिपोर्टिंग के लिए मानक स्थापित किए।
पत्रकारिता में अपने चार दशक के दौरान उन्होंने कई रचनात्मक और अन्य बदलावों को करीब से देखा। यह यात्रा तब शुरू हुई, जब उन्होंने एक साल अध्यापन के बाद अपना कॅरियर बदल लिया। इसके बाद एकेबी 'पायोनियर' और 'बिजनेस स्टैंडर्ड' के संपादक बने। अब वे 'बिजनेस स्टैंडर्ड' के संपादकीय निदेशक हैं और इसमें लंबे समय से एक कॉलम लिख रहे हैं। वे 'द राइज ऑफ गोलियथ' के लेखक भी हैं। यह उनकी दूसरी पुस्तक है।