Bharat-Afghanistan Sambandh
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- ISBN13: 9789394534674
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: HIndi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Political Science
प्राचीन साहित्य पर आधारित लेखों से प्रेरणा लेते हुए तथा अबतक अज्ञात अभिलेखीय दस्तावेजों पर निर्भर करते हुए इस पुस्तक के शोधकार्य में अधुनातन शोध-शैली को अपनाया गया है और भारत-अफगानिस्तान संबंध पर अकाट्य स्पष्टीकरण एवं सुस्पष्ट निष्कर्ष प्रदान करने का प्रयास किया गया है। बहुमूल्य यूनानी और चीनी स्रोतों का उपयोग करते हुए इस पुस्तक में प्राचीन अफगानिस्तान के भारत से जुड़े दिलचस्प संबंधों को उजागर किया गया है, जिनका संस्कृत-साक्ष्यों के प्रकाश में भी परीक्षण किया गया है।
दोनों देशों की दिलचस्प तथा अब तक बहुत कम ज्ञात बातों का ब्योरा इस शोध पुस्तक में है। यूनानी और भारतीय साहित्य इस रोचक तथ्य का समर्थन करता है कि भारत और अफगानिस्तान आधुनिक सीमाओं के सीमांकन से पहले सहस्लाब्दियों तक लगभग सबकुछ साझा करते थे।
यह पुस्तक भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन में उपलब्ध अभिलेखीय आलेखों के आधार पर भारत-अफगान द्विपक्षीय संबंधों की विवेचना करती है। इस अध्ययन में भारत की अफगान नीति के विकास की प्रयोगसिद्ध अकादमिक व्याख्या देने का प्रयास किया गया है| इसमें इस सवाल की भी पड़ताल की गई है कि किस तरह से तालिबान द्वारा दो बार तख्तापलट और जबरन शासन अवधि के बाहर, बड़ी शक्तियों और पड़ोसी देशों के साथ अफगानिस्तान के बहुपक्षीय संबंधों का भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
दोनों देशों की दिलचस्प तथा अब तक बहुत कम ज्ञात बातों का ब्योरा इस शोध पुस्तक में है। यूनानी और भारतीय साहित्य इस रोचक तथ्य का समर्थन करता है कि भारत और अफगानिस्तान आधुनिक सीमाओं के सीमांकन से पहले सहस्लाब्दियों तक लगभग सबकुछ साझा करते थे।
यह पुस्तक भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन में उपलब्ध अभिलेखीय आलेखों के आधार पर भारत-अफगान द्विपक्षीय संबंधों की विवेचना करती है। इस अध्ययन में भारत की अफगान नीति के विकास की प्रयोगसिद्ध अकादमिक व्याख्या देने का प्रयास किया गया है| इसमें इस सवाल की भी पड़ताल की गई है कि किस तरह से तालिबान द्वारा दो बार तख्तापलट और जबरन शासन अवधि के बाहर, बड़ी शक्तियों और पड़ोसी देशों के साथ अफगानिस्तान के बहुपक्षीय संबंधों का भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
सरोज कुमार रथ
इतिहासकार और दक्षिण एशियाई मामलों के सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. सरोज कुमार रथ वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्रोफेसर हैं। पूर्व में
वे होसेई विश्वविद्यालय, टोक्यो और डीकिन विश्वविद्यालय, मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) में कार्यरत थे। वे यूनिवर्सिडिड ऑटोनोमा डी न्यूवो लियोन, मॉण्टेरी, मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। उनके द्वारा लिखी पुस्तक “फ्रैजाइल फ्रंटियर्स : द सीक्रेट हिस्टरी ऑफ मुंबई टेरर अटैक्स ' रूटलेज प्रकाशन, लंदन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित हुई है।
अपने 22 वर्षों के अकादमिक जीवन में उन्होंने दो पी-एच.डी. छात्राओं का मार्गदर्शन किया है और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 100 से अधिक शोध-पत्र तथा लेख प्रकाशित किए हैं। वह संघर्ष समाधान और आतंकवाद के विशेषज्ञ हैं तथा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर नाटो-तुर्की राष्ट्रीय पुलिस की नीति निर्माताओं-शिक्षाविदों को बैठक के सदस्य हैं। डॉ. रथ ने दक्षिण एशिया में सुरक्षा स्थिति पर अनुसंधान के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रदत्त अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया है।
इतिहासकार और दक्षिण एशियाई मामलों के सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. सरोज कुमार रथ वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्रोफेसर हैं। पूर्व में
वे होसेई विश्वविद्यालय, टोक्यो और डीकिन विश्वविद्यालय, मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) में कार्यरत थे। वे यूनिवर्सिडिड ऑटोनोमा डी न्यूवो लियोन, मॉण्टेरी, मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। उनके द्वारा लिखी पुस्तक “फ्रैजाइल फ्रंटियर्स : द सीक्रेट हिस्टरी ऑफ मुंबई टेरर अटैक्स ' रूटलेज प्रकाशन, लंदन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित हुई है।
अपने 22 वर्षों के अकादमिक जीवन में उन्होंने दो पी-एच.डी. छात्राओं का मार्गदर्शन किया है और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 100 से अधिक शोध-पत्र तथा लेख प्रकाशित किए हैं। वह संघर्ष समाधान और आतंकवाद के विशेषज्ञ हैं तथा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर नाटो-तुर्की राष्ट्रीय पुलिस की नीति निर्माताओं-शिक्षाविदों को बैठक के सदस्य हैं। डॉ. रथ ने दक्षिण एशिया में सुरक्षा स्थिति पर अनुसंधान के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रदत्त अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया है।