Apra Poems Book By Suryakant Tripathi Nirala in Hindi
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- ISBN13: 9789390825707
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
अपरा सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की एक महत्वपूर्ण कविता संग्रह है। इस पुस्तक में निराला ने जीवन, प्रेम, समाज, और मानवीय अनुभूतियों की गहरी और प्रेरणादायक कविताएँ प्रस्तुत की हैं। 'अपरा' का अर्थ है 'अद्वितीय', 'अविस्मरणीय' या 'जो कभी समाप्त न हो', और इस संग्रह की कविताएँ भी उसी भाव को व्यक्त करती हैं, जो निराला के विशिष्ट लेखन की पहचान रही है।
अपरा में निराला ने भारतीय समाज की जटिलताओं, समाजिक असमानताओं, और एक व्यक्ति के भीतर संघर्ष को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। उनके शब्दों में एक गहरी करूणा, तीव्रता और क्रांति का संचार है, जो पाठक को अंदर तक छू जाता है। निराला की कविताओं में उनके समय की परिस्थितियों और उनके व्यक्तिगत अनुभवों की गहरी छाप दिखाई देती है।
अपरा में निराला ने भारतीय समाज की जटिलताओं, समाजिक असमानताओं, और एक व्यक्ति के भीतर संघर्ष को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। उनके शब्दों में एक गहरी करूणा, तीव्रता और क्रांति का संचार है, जो पाठक को अंदर तक छू जाता है। निराला की कविताओं में उनके समय की परिस्थितियों और उनके व्यक्तिगत अनुभवों की गहरी छाप दिखाई देती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961