Anamika Poems Book By Suryakant Tripathi Nirala in Hindi
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- ISBN13: 9789390825967
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature & Fiction
अनामिका सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण काव्य-संग्रह है, जो हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है। यह संग्रह निराला की काव्यशक्ति, संवेदनशीलता और जीवन के गहरे अनुभवों को दर्शाता है। 'निराला' हिंदी साहित्य के महान कवियों में से एक हैं, जिनकी कविता में निरंतरता और विकास की गहरी प्रवृत्तियां मिलती हैं।
अनामिका में निराला की कविता ने समाज के असंतुलन, अन्याय और दुखों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनके शब्दों में एक अद्वितीय शक्ति और तीव्रता है, जो पाठकों को आत्मा तक छूने का सामर्थ्य रखती है। इस काव्य-संग्रह में निराला ने मानवीय संवेदनाओं, आस्थाओं और विडंबनाओं को चित्रित किया है।
अनामिका में निराला की कविता ने समाज के असंतुलन, अन्याय और दुखों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनके शब्दों में एक अद्वितीय शक्ति और तीव्रता है, जो पाठकों को आत्मा तक छूने का सामर्थ्य रखती है। इस काव्य-संग्रह में निराला ने मानवीय संवेदनाओं, आस्थाओं और विडंबनाओं को चित्रित किया है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961
जन्म : वसंत पंचमी, 1896। व्यक्तित्व में कबीर जैसा फक्खड़पन, काव्य-चेतना में तुलसी की-सी सांस्कृतिक निष्ठा, सूर की मधुर श्रृंगारिकता, प्रज्ञा में शंकर-विवेकानंद का तत्त्व-मंथन तथा कला-पक्ष में केशव की दुरूहता लेकर पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने हिंदी-जगत् में पदार्पण किया। बचपन से ही संकटों से संघर्ष करते हुए निराला ने अपने दृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण किया। उनके विद्रोही व्यक्तित्व की भाँति ही उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से मुखर हुआ।
उनकी कविताओं में निराशा की उदासी, प्यार की बोझिल प्यास, जीवन में किसी से चिर-मिलन की आकांक्षा से टकराकर संगीत के स्वतंत्र आरोहण- अवरोहण के स्वर ध्वनित-प्रतिध्वनित होते हैं, साथ ही प्रकृति, प्रेम-सौंदर्य की वाणी भी गुंजित होती है। निस्संदेह महाप्राण निराला आधुनिक कविता-युग के प्रवर्तक हैं। उनकी रचनाधर्मिता सर्वतोमुखी है। उन्होंने विपुल साहित्य, यानी उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध और जीवनियाँ लिखकर हिंदी साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया और अपनी प्रखर लेखनी से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया।
स्मृतिशेष : 15 अक्तूबर, 1961