Ajneya : Swatantraya Ki Khoj
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- ISBN13: 9789386870025
- Binding: Hardcover
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
सप्रसिद्ध आलोचक प्रोफेसर कृष्णदत्त पालीवाल की यह पुस्तक अज्ञेय के रचनाकर्म का विभिन्न कोणों से विवेचन-विश्लेषण करते हुए स्थापित करती है कि अज्ञेय की दृष्टि में सर्वोपरि मूल्य है स्वातंत्र्य। उनके उपन्यास, डायरी, कविता और साहित्य-चिंतन की गहन जाँच-पड़ताल करते हुए प्रोफेसर पालीवाल ने पाया है कि भारतीयता, सामाजिकता और आधुनिकता तीनों को विलक्षण ढंग से साधनेवाले अज्ञेय पाठक की स्वाधीन चेतना और आत्म-बोध जगाने का निरंतर प्रयास करते हैं। उनके बहुलतावादी चिंतन-सृजन की केंद्रीय समस्या है—‘आत्म’ और ‘अन्य’ के रिश्ते की समस्या। मैं और वह, मम और ममेतर के बीच रिश्ते की समस्या, शब्द के सार्थक प्रयोग की समस्या ही अज्ञेय के संपूर्ण सृजनात्मक पुरुषार्थ की आत्मा है, जिसमें हर कोण से स्वाधीनता के न जाने कितने प्रश्न उठते हैं। उनके लिए स्वाधीन चिंतन अथवा स्वाधीन विवेक राजनीतिक स्वातंत्र्य से कहीं बड़ा है।
अज्ञेय पर लगे तमाम आक्षेपों और भर्त्सना के पीछे के सच को सामने लाकर यह पुस्तक ठोस प्रमाणों के आधार पर यह भी उजागर करती है कि उन पर लगाए गए आक्षेप कितने निराधार और पूर्वग्रह प्रेरित हैं। अज्ञेय के सृजन के अनेक ऐसे पक्षों को यह पुस्तक प्रकाश में लाती है, जिनकी हिंदी आलोचना में प्रायः अनदेखी होते रहने के कारण पाठक दिग्भ्रमित हुआ है।
अज्ञेय साहित्य के पाठकों के लिए एक पठनीय पुस्तक।
अज्ञेय पर लगे तमाम आक्षेपों और भर्त्सना के पीछे के सच को सामने लाकर यह पुस्तक ठोस प्रमाणों के आधार पर यह भी उजागर करती है कि उन पर लगाए गए आक्षेप कितने निराधार और पूर्वग्रह प्रेरित हैं। अज्ञेय के सृजन के अनेक ऐसे पक्षों को यह पुस्तक प्रकाश में लाती है, जिनकी हिंदी आलोचना में प्रायः अनदेखी होते रहने के कारण पाठक दिग्भ्रमित हुआ है।
अज्ञेय साहित्य के पाठकों के लिए एक पठनीय पुस्तक।
कृष्णदत्त पालीवाल
जन्म : 4 मार्च, 1943 को सिकंदरपुर, जिला-फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। जापान के तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर तथा सस्ता साहित्य मंडल के सचिव रहे।
प्रमुख कृतियाँ : रामच्रंद्र शुक्ल का चिंतन जगत्, भवानी प्रसाद मिश्र का रचना-संसार, सर्वेश्वर और उनकी कविता, नव जागरण और महादेवी वर्मा का रचनाकर्म, अंबेडकरः अस्वीकार का साहस, निर्मल वर्माः उत्तर औपनिवेशिक विमर्श, अज्ञेयः कवि कर्म का संकट, हिंदी आलोचना का सैद्धांतिक आधार, हिंदी आलोचना के नए वैचारिक सरोकार, हिंदी आलोचना का उत्तर आधुनिक विमर्श, दलित साहित्य के बुनियादी सरोकार
मैथिलीशरण गुप्त रचनावली तथा अज्ञेय रचनावली का संपादन।
पुरस्कार-सम्मान : राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान; सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान; साहित्यकार सम्मान; आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का विश्व हिंदी सम्मान 2007; राइटर इन रेजीडेंसी फैलोशिप; साहित्य अकादेमी; माखनलाल चतुर्वेदी सम्मान; प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान।
स्मृतिशेष : 8 फरवरी, 2015
जन्म : 4 मार्च, 1943 को सिकंदरपुर, जिला-फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। जापान के तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर तथा सस्ता साहित्य मंडल के सचिव रहे।
प्रमुख कृतियाँ : रामच्रंद्र शुक्ल का चिंतन जगत्, भवानी प्रसाद मिश्र का रचना-संसार, सर्वेश्वर और उनकी कविता, नव जागरण और महादेवी वर्मा का रचनाकर्म, अंबेडकरः अस्वीकार का साहस, निर्मल वर्माः उत्तर औपनिवेशिक विमर्श, अज्ञेयः कवि कर्म का संकट, हिंदी आलोचना का सैद्धांतिक आधार, हिंदी आलोचना के नए वैचारिक सरोकार, हिंदी आलोचना का उत्तर आधुनिक विमर्श, दलित साहित्य के बुनियादी सरोकार
मैथिलीशरण गुप्त रचनावली तथा अज्ञेय रचनावली का संपादन।
पुरस्कार-सम्मान : राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान; सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान; साहित्यकार सम्मान; आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का विश्व हिंदी सम्मान 2007; राइटर इन रेजीडेंसी फैलोशिप; साहित्य अकादेमी; माखनलाल चतुर्वेदी सम्मान; प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान।
स्मृतिशेष : 8 फरवरी, 2015