Adhyapak | Maali Stories By Rabindra Nath Thakur
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- ISBN13: 9789348724700
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
अधयापक कहानी में रवींद्रनाथ ठाकुर ने शिक्षक और विद्यार्थी के रिश्ते की गहराई और जटिलताओं को प्रस्तुत किया है। यह कहानी एक शिक्षक और उसके विद्यार्थियों के बीच के संबंधों को लेकर लिखी गई है। कहानी में यह दिखाया गया है कि शिक्षक का काम केवल किताबों तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह अपने विद्यार्थियों के जीवन को आकार देने का भी जिम्मेदार होता है।
माली कहानी में रवींद्रनाथ ठाकुर ने प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते को प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। माली कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जो बागवानी और पौधों से जुड़ा हुआ है। माली अपने काम में इतनी तन्मयता और प्रेम से लगा हुआ है कि वह न केवल पौधों की देखभाल करता है, बल्कि अपने जीवन में भी शांति और संतुलन की खोज करता है।
माली कहानी में रवींद्रनाथ ठाकुर ने प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते को प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। माली कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जो बागवानी और पौधों से जुड़ा हुआ है। माली अपने काम में इतनी तन्मयता और प्रेम से लगा हुआ है कि वह न केवल पौधों की देखभाल करता है, बल्कि अपने जीवन में भी शांति और संतुलन की खोज करता है।
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा में उनकी अद्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की आयु में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की आयु में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकनेवाले युगद्रष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा की आभा पूरे विश्व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941 ।