Adhivas Ki Phans
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- ISBN13: 9789392013591
- Binding: Paperback
- Publisher: Prabhat Prakashan
- Publisher Imprint: NA
- Pages: NA
- Language: Hindi
- Edition: NA
- Item Weight: 500
- BISAC Subject(s): Literature
कथालेखक क्या करता है ? इस सवाल का वस्तुपरक जवाब यह है कि वह समय और समाज का इतिवृत्त लिखता है। लेकिन कथा में समय और समाज के अंकन की कोई तय सीमा नहीं होती। वह समकालीन भी रह सकती है और कालातीत भी। समय के त्रिपार्श्व पर टिकी कथादृष्टि बेशक व्यापक और बहुमुखी होती है। इस प्रसंग में खास बात यह है कथानक का यथार्थ टकसाल में ढले सिक्के की तरह नहीं होता, वह वक्त के लगातार सरकते पहिए के साथ चलता है। इस संग्रह की चौदह कहानियों में चित्रित समय निस्संदेह समकालीन है।
लेकिन उनमें सदी के गतिशील चेहरे की कई-कई सलवटें भी शामिल हैं। 'अधिवास की फाँस' की परिधि में समसामयिक जीवन का विस्तार है तो आंचलिक उलझनों से बने तने अनगिनत रेशे भी हैं। अंतर्वस्तु के लिहाज से इस संग्रह की सात कहानियों में आदिवासी कथाभूमि की परिक्रमा देखी जा सकती है। तो भी ये कहानियाँ सिर्फ कंटेंट के लिहाज से ही खास नहीं हैं, बल्कि अपने भाषिक दृश्यांकन की दृष्टि से भी रोचक हैं। साहित्य की विविध विधाओं में लगभग ढाई दर्जन प्रकाशित पुस्तकों की मार्फत विद्याभूषण के सृजन और विचार की जो विविधता चर्चा में रहती आई है, उसे यहाँ भी परखा जा सकता है।
लेकिन उनमें सदी के गतिशील चेहरे की कई-कई सलवटें भी शामिल हैं। 'अधिवास की फाँस' की परिधि में समसामयिक जीवन का विस्तार है तो आंचलिक उलझनों से बने तने अनगिनत रेशे भी हैं। अंतर्वस्तु के लिहाज से इस संग्रह की सात कहानियों में आदिवासी कथाभूमि की परिक्रमा देखी जा सकती है। तो भी ये कहानियाँ सिर्फ कंटेंट के लिहाज से ही खास नहीं हैं, बल्कि अपने भाषिक दृश्यांकन की दृष्टि से भी रोचक हैं। साहित्य की विविध विधाओं में लगभग ढाई दर्जन प्रकाशित पुस्तकों की मार्फत विद्याभूषण के सृजन और विचार की जो विविधता चर्चा में रहती आई है, उसे यहाँ भी परखा जा सकता है।
विद्याभूषण
जन्म : 5 सितंबर, 1940।
शिक्षा : पीएच.डी. तक।
प्रकाशित कृतियाँ : दस कविता-संग्रह, दो गीत-संग्रह, चार कहानी-संग्रह, एक उपन्यास, एक नाटक, एक विविधा - संस्कृति के शब्द, सात आलोचना-वनस्थली के कथापुरुष, बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में, पाठ और परख, झारखंड : समाज, संस्कृति और साहित्य, झारखंड की हिंदी परंपरा के शब्द- शिखर, कलम को तीर होने दो एवं समाज दर्शन की तीन पुस्तकें।
संपादन : कविताएँ सातवें दशक की, प्रपंच, घर की तलाश में यात्रा, महासर्ग, धूमकेतुओं की जन्मपत्री, तीसरी आँख, हारे को हरनाम, काश, यह कहानी होती, अर्धवृत्त ।
पत्रिकाएँ : क्रमशः/अभिज्ञान/प्रसंग/ वर्तमान संदर्भ कथादेश का किट्ट केंद्रित अंक, (दैनिक) देशप्राण तथा झारखंड जागरण के संपादकीय विभाग से यथासमय संयुक्त । लगभग दो दर्जन पुस्तकों का अनाम संपादन। गुजराती, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं में कई रचनाएँ अनूदित। कुड़ख और नागपुरी में कविता-संग्रह 'पठार को सुनो' का भाषांतर।
संपर्क : द्वारा श्री नीरज कुमार, सरला बिरला यूनिवर्सिटी कैंपस, महिलौंग, टाटीसिलवे, राँची-835103 (झारखंड)
मो. : 9955161422, 8340153956 इ-मेल : vidyabhooshan@gmail.com
जन्म : 5 सितंबर, 1940।
शिक्षा : पीएच.डी. तक।
प्रकाशित कृतियाँ : दस कविता-संग्रह, दो गीत-संग्रह, चार कहानी-संग्रह, एक उपन्यास, एक नाटक, एक विविधा - संस्कृति के शब्द, सात आलोचना-वनस्थली के कथापुरुष, बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में, पाठ और परख, झारखंड : समाज, संस्कृति और साहित्य, झारखंड की हिंदी परंपरा के शब्द- शिखर, कलम को तीर होने दो एवं समाज दर्शन की तीन पुस्तकें।
संपादन : कविताएँ सातवें दशक की, प्रपंच, घर की तलाश में यात्रा, महासर्ग, धूमकेतुओं की जन्मपत्री, तीसरी आँख, हारे को हरनाम, काश, यह कहानी होती, अर्धवृत्त ।
पत्रिकाएँ : क्रमशः/अभिज्ञान/प्रसंग/ वर्तमान संदर्भ कथादेश का किट्ट केंद्रित अंक, (दैनिक) देशप्राण तथा झारखंड जागरण के संपादकीय विभाग से यथासमय संयुक्त । लगभग दो दर्जन पुस्तकों का अनाम संपादन। गुजराती, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं में कई रचनाएँ अनूदित। कुड़ख और नागपुरी में कविता-संग्रह 'पठार को सुनो' का भाषांतर।
संपर्क : द्वारा श्री नीरज कुमार, सरला बिरला यूनिवर्सिटी कैंपस, महिलौंग, टाटीसिलवे, राँची-835103 (झारखंड)
मो. : 9955161422, 8340153956 इ-मेल : vidyabhooshan@gmail.com