1842 : Ek Sangharsh Gatha | An Historical Novel Book In Hindi

1842 : Ek Sangharsh Gatha | An Historical Novel Book In Hindi

by Balram Dhakad

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  • ISBN13: 9789355627988
  • Binding: Paperback
  • Publisher: Prabhat Prakashan
  • Publisher Imprint: NA
  • Pages: NA
  • Language: Hindi
  • Edition: NA
  • Item Weight: 500
  • BISAC Subject(s): Novel
अपशकुन तो उसी दिन हो गया था, जिस दिन बिन कासिम ने पवित्र सोमनाथ मंदिर को लूटा था। उस दिन अपशकुन हो गया था, जिस दिन सम्राट् पृथ्वीराज गद्दारों के कारण पराजित हुए और दिल्ली पर राक्षसों के एक गुलाम का राज कायम हो गया। यही अपशकुन उस दिन फिर हुआ, जिस दिन महारानी दुर्गावती सत्ता के लोभी और स्त्री-लोलुप अकबर की भारी-भरकम फौज से अकेले युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गईं और इस देश के पुरुष अपनी स्त्रियों के आँचल में मुँह छुपाए बैठे रहे। फिरंगी के अत्याचारों से यह अपशकुन रोज हो रहा है। इससे अधिक क्या अपशकुन होगा ?

- इसी उपन्यास से

1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पंद्रह वर्ष पूर्व वर्तमान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के बड़े भूभाग पर एक क्रांति घटित हुई थी, जिसे इतिहास में 'बुंदेला विद्रोह' के नाम से जाना जाता है। 1857 के क्रांतिबीज इस आंदोलन के हुतात्मा बलिदानियों के योगदान को रेखांकित करने का प्रयास है, यह ऐतिहासिक उपन्यास, '1842: एक संघर्ष गाथा'। हीरापुर, नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश के राजा हिरदेशाह लोधी और जैतपुर, उत्तर प्रदेश के राजा परीक्षित सिंह बुंदेला इस कहानी के नायक अवश्य हैं, परंतु उनके हजारों-लाखों सहयोगी किसान, मजदूरों और साधारण जनों के साहस, शौर्य और उत्सर्ग को श्रद्धांजलि और मान्यता है यह पुस्तक ।
बलराम धाकड़ का जन्म 28 सितंबर, 1981 को बरेली, जिला रायसेन (मध्य प्रदेश) में हुआ। संप्रति मध्य प्रदेश शासन जी.एस.टी. विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर सेवारत हैं। मुख्यतः गजलकार श्री धाकड़ की विचारोत्तेजक कहन और प्रभावी अभिव्यक्ति उन्हें समकालीन गजलकारों की प्रथम पंक्ति में खड़ा करती है। इसके अतिरिक्त लोक के मौखिक वृत्तों में इतिहास की खोज, भग्न एवं विस्मृत हुए ऐतिहासिक गौरव की पुनर्स्थापना का अनन्य भाव उन्हें एक संभावनाशील ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में रेखांकित करता है। 'रानी कमलापति' जैसे बहुपठित, बहुप्रशंसित एवं म.प्र. साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत उपन्यास के बाद '1842 : एक संघर्ष गाथा' उनका दूसरा ऐतिहासिक उपन्यास है।

उनका लेखन मध्य प्रदेश की सहिष्णु संस्कृति और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ध्वजवाहक रहे चरित्रों को उजागर करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जिसमें किसान, मजदूर एवं वनवासी रणबांकुरों के शौर्य और उत्सर्ग के साथ ही तत्कालीन समाज, राजनीति, जनांकिकी, कृषि और अर्थव्यवस्था की संक्षिप्त किंतु स्पष्ट झाँकी देखने को मिलती है। भारतीय साहित्यकाश में यह प्रयास इतिहास के स्थापित नायकों की चकाचौंध में धूमिल पड़ गए लोकनायकों की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने एवं उन्हें उनके त्याग का उचित प्रतिसाद देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

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