प्रस्तुत पुस्तक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से वैश्वीकरण के विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है। पुस्तक वैश्वीकरण की अवधारणात्मक, सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक मीमांसा प्रस्तुत करती है, साथ ही वैश्विक समाजशास्त्रीय व्याख्याओं के आधार पर उसका मूल्यांकन भी करती है। जिन पक्षों को इस पुस्तक ने छुआ है, वे आज वैश्वीकरण प्रक्रिया के प्रमुख वाहक माने जाते हैं। पुस्तक अपनी ही सीमा में उस धुंध को साफ करने का प्रयास है जो हिन्दी भाषी प्रक्रियाओं का परीक्षण है, जो चर्चा के विषय हैं, और जिन पर बहस जारी है।
मूलतः पुस्तक के दो भाग हैं – पहला अवधारणात्मक तथा सैधान्तिक विश्लेषण से संबंधित है और दूसरा समाज के उन पक्षों के विश्लेषण से संबंधित है जो वैश्वीकरण के संपर्क में आए हैं। अंत में बहस के उस पक्ष की चर्चा भी है जो वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक सोच के साथ जुड़ी हुई है। स्वयं पाठक सोचें कि वैश्वीकरण को वह किस अंदाज में देखते हैं?
VAISHVIKARAN: Samajshastriya Pariprekshya
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Category: Business & management
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