कुछ समय पहले संचार माध्यमों के चरित्र में जबर्दस्त और तेजी से बदलाव आया है। यह बदलाव अप्रत्याशित तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसका स्वरूप चौंकने वाला अवश्य है। इधर संचार माध्यमों की अंतर्वस्तु का रूप ही बदल गया है। इसमें रेखांकित करने लायक बदलाव है उद्योग और जनमाध्यमों के आपसी रिश्ते जिनमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने वाली दैत्याकार कंपनियों और मीडिया (दूरसंचार और इंटरनेट) से उनका संबंध मुख्य है।
लेकिन हम देखते हैं कि सार्वजनिक प्रसारण व्यवस्था कमजोर होती चली गई है। जनता के हित से झुड़े मुद्दे संचार माध्यमों से धीरे-धरे नदारद हो रहे हैं। इन मध्यामों में उनकी जगह कम होती जा रही हैं। इन माध्यमों का भूमंडलीय रूप किस दिशा में जा रहा है। या भविष्य में उसकी दिशा क्या होगी, इसका नमूना अमरीकी संचार माध्यमों में देखा जा सकता है। भूमंडलीकरण के पक्ष में जो तर्क या कुतर्क पेश किए जा रहे हैं, इस पुस्तक में लेखकों उए उनका भी मूल्यांकन किया है।
इस पुस्तक को अमरीकी के दो बड़े माध्यम विशेषज्ञों ने मिलकर लिखा है।