बुर्जुआ इतिहासकारों ने बड़े पैमाने पर यह भ्रम फैलाया है कि गांधी और इंडियन नेशनल कांग्रेस ने अनन्य रूप से भारत को घृणित ब्रिटिश राज से मुक्त कराया है और यह कि इस उद्देश्य की प्राप्ति केवल अहिंसा, शांतिपूर्ण असयोग तथा सविनय अवज्ञा के तरीके से ही की गई ।
जबकि सचाई इसके विपरीत है। 1857 के विद्रोह वीरों, गदर के देशभक्तों, भगत सिंह और उनके साथियों ने सशस्त्र संघर्ष के लिए भारतीय जनता को प्रेरित किया तथा उसका नेतृत्व किया क्योंकी वे ब्रिटिश औपनिवेशक कब्जे से अपने देश को स्वतंत्र करने के लिए सशस्त्र संघर्ष को सर्वोतम उपाय समझते थे।
स्वतंत्रता के महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हजारों आम लोगों और सैकड़ों क्रांतिकारी नेताओं ने अपने जीवन का बलिदान दिया। उनके संघर्ष को भगत सिंह ने अपने लोकप्रिए नारे ‘इंकीलाब जिंदाबाद!’, के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने भारतिय बुर्जुआ वर्ग के अत्यधिक समझौतापरस्त, कायर और रूढ़िवादी प्रतिनिधीयों को देना क्रांतिकारियों की स्मृति और उनकी आत्मबलिदानी वीरता का अपमान है।
इन वीरों का सम्मान करना, उनकी स्मृति को बनाए रखना तथा साम्राज्यवाद एवं शोषण के विरुद्ध अपने निरंतर संघर्ष में उनसे सीखना सभी प्रगतिशील लोगों, मजदूरों और किसानों का कर्तव्य है।