‘इस छोटी सी किताब में काफी सीखें हैं, दृष्टि की विशालता है और असीम ज्ञान और अनुभव का संलेशष है। इतिहास के छत्रों को तो बारीकी से इसका अध्ययन करना चाहिए, अन्य पाठकों को भी इसे मनोयोग से पढ़ना चाहिए, क्योंकि इसमें दोनों बातें बताई गई हैं, कि इतिहास को समुचित रूप से कैसा होना चाहिए और उस पर अमल कैसे होना चाहिए। यह पुस्तक न सिर्फ अत्यंत रुचिकर बल्कि मनोरंजक भी है।’ सर लूई नेमियर
इतिहासलेखन पद्धति के सवाल पर बहस लगातार जारी है। यह पुस्तक इस विषय पर एक शास्त्रीय वक्तव्य है। अन्नाल शाखा के इतिहासकर एक भी यथातथ्य सैद्धान्तिक अथवा पद्धति शास्त्रीय शोधकार्य नहीं छोड़ गए हैं, मगर ‘इतिहासकर का शिल्प’ उस बौद्धिक मनोवृत्ति को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करती है जिसने उन इतिहासकारों को एक नेतृत्वकारी प्रतिनिधि ने इतिहासलेखन को देखा था।